शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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नव प्रभात का नवल सूर्य है,
आओ अर्घ्य चढ़ाएं हम
पावन पर्व मकर संक्रांति,
मिल-जुल आज मनाएं हम।
खेतों में फसलें फूटी हैं,
बागों में हैं फूल खिले
सर्द बसंती संधि दिवस,
भंवरे कलियों से आन मिले।
नयी उमंगें मन में जागी,
नव पल्लव मुस्काए हैं
नयी चेतना लिए परिंदे,
आसमान पर छाए हैं।
है संदेश बसंत ऋतु का,
बासंती हर पल होगा
बगिया में कोयल कूकेगी,
हर पल्लव स्पंदन होगा।
आसमान पर आज पतंगें,
लहर-लहर लहराएंगी
दुनिया वालों का संदेशा,
भानु पर्यंत पहुंचाएंगीl
आज सभी श्रद्धालुजन,
गंगा स्नान कर आएंगे
दान धर्म कर गंगा तीरे,
पूजा-पाठ करवाएंगे।
बूढ़े-बच्चे और जवान सब,
खुशियां खूब मनाएंगे
वो मारा,वो काटा करके,
आसमान गुंजाएंगे।
स्वागत करने को बसंत का,
लालायित हैं लोग सभी
ढप,धमाल औ झांझ-मजीरे,
गीत फगुनियां गाएंगे।
घेवर गज़क और तिल लड्डू,
मजे करेंगे खा कर केl
खूब उड़ाएंगे कनकव्वे,
घर की छत पर जा करकेll
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।