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नागरिकताःसरकार की नादानी

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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नया नागरिकता विधेयक अब जो जो गुल खिला रहा है,उसकी भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी। सबसे पहले तो मोदी और जापानी प्रधानमंत्री की गुवाहाटी-भेंट स्थगित हो गई। दूसरा,बांग्लादेश और पाकिस्तान में इस विधेयक की कड़ी प्रतिक्रिया हो रही है। बांग्लादेश के गृहमंत्री और विदेश मंत्री की भारत-यात्रा स्थगित हो गई। पाकिस्तान के एक हिंदू सांसद और एक हिंदू विधायक ने इस नए कानून की भर्त्सना कर दी है। अभी तक अफगानिस्तान की प्रतिक्रिया नहीं आई है,क्योंकि उसके राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री,दोनों ही भारत के पुराने मित्र हैं। यह ठीक है कि वे इस नए कानून की इमरान खान की तरह भर्त्सना नहीं करेंगे और इसे संघ का हिंदुत्ववादी एजेंडा नहीं कहेंगे,लेकिन उन्हें इमरान और शेख हसीना से भी ज्यादा अफसोस होगा,क्योंकि उन पर भी यह इल्जाम लग गया है कि वे हिंदू-विरोधी हैं। इन तीनों मुस्लिम राष्ट्रों को किसी मुद्दे पर एक करने का श्रेय किसी को मिलेगा तो वह हमारी मोदी सरकार को मिलेगा। हमारी सरकार,पता नहीं क्यों यह कानून ले आई है ? इस कानून के बिना भी वह पड़ौसी देशों के हर सताए हुए आदमी को भारत की नागरिकता दे सकती थी। उनमें हिंदू तो अपने-आप ही आ जाते,लेकिन उस सूची में से शरणार्थी मुसलमानों को निकालकर भाजपा सरकार ने अपने गले में सांप्रदायिकता का पत्थर लटका लिया है। क्यों लटका लिया है,समझ में नहीं आता ? जब वह विपक्ष में थी,तब उसका यह पैंतरा हिन्दू मत पाने के लिए सही था,लेकिन अब वह सरकार में है। उसे अब पूरा अधिकार है कि वह किसी भी विदेशी को नागरिकता दे या न दे। इस अधिकार के बावजूद उसे अपने-आपको नंगा करने की जरुरत क्या थी ? उसने सिर्फ अफगानिस्तान,पाकिस्तान और बांग्लादेश का नाम ही क्यों लिया ? क्या अफगानिस्तान भी १९४७ के पहले भारत का हिस्सा था ? श्रीलंका और बर्मा तो भारत के हिस्से ही थे। उनके यहां से आनेवाले शरणार्थियों के लिए इस नए कानून में कोई प्रावधान नहीं है। यह कानून भी नोटबंदी-जैसी ही भयंकर भूल है। इससे फायदा कम,नुकसान ज्यादा है। बंगाल सहित सभी पूर्वोत्तर प्रांतों से भाजपा ने हाथ धो लिये हैं। बेहतर होता कि राष्ट्रपति इस विधेयक पर दस्तखत नहीं करते तो संसद इस पर पुनर्विचार करती और सरकार को अपनी नादानी से मुक्ति का रास्ता मिल जाता।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।