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आबादी को बढ़ने से रोकें

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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यदि भारत में जनसंख्या की रफ्तार जो आजकल है,वह बनी रही तो कुछ ही वर्षों में वह चीन को मात कर देगा। इस समय चीन से सिर्फ ३-४ करोड़ लोग ही हमारे यहां कम हैं। भारत की आबादी इस वक्त १ अरब ४० करोड़ के आस-पास है। चीन ने यदि कई वर्षों तक हर परिवार पर एक बच्चे का प्रतिबंध नहीं लगाया होता तो आज चीन की आबादी शायद २ अरब तक पहुंच जाती। अब से ६०-७० साल पहले हर चीनी परिवार में प्रायः पांच-छह बच्चे हुआ करते थे। भारत से भी ज्यादा दरिद्रता चीन में थी लेकिन चीन ने आबादी की बढ़त पर सख्ती की, उसके कारण उसकी अर्थ व्यवस्था में भी काफी सुधार हुआ,लेकिन आश्चर्य है कि भारत की सरकारें इस मुद्दे पर खर्राटे खींच रही हैं।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस मुद्दे पर थोड़ी सजगतता दिखाई थी और नसबंदी अभियान शुरु किया था लेकिन संजय गांधी के अति उत्साह और कुछ ज्यादतियों के कारण वह हाशिए में चला गया। आपातकाल ने उसे और भी बदनाम कर दिया। इस वक्त दुनिया में जनसंख्या की बाढ़ जिन देशों में सबसे ज्यादा है,उनमें भारत अग्रणी है। यह एकदम सही समय है,जब हम आबादी को बढ़ने से रोकें। यदि भाजपा सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाएगी तो उसका विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं होगी। तो वह क्या-क्या करे ? पहला, जब वह लोगों को ‘कोरोना’ का टीका लगाए तो मुफ्त में नसबंदी का भी एलान करे। वह अनिवार्य न हो। हाँ,कुछ प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं। जिनके एक या दो बच्चे हों,वे स्वेच्छा से टीका लगवाएं। दूसरा, ‘दो हम और हमारे दो’ का नारा घर-घर में गुंजा दिया जाए। इसे कानूनी रुप भी दिया जाए। जो दो से ज्यादा बच्चे पैदा करें,उन्हें सरकारी नौकरियों,संसद और विधानसभा की उम्मीदवारी एवं कई शासकीय सुविधाओं से वंचित किया जाए। यह कठोर और निर्दयतापूर्ण तो लगता है लेकिन इससे देश का इतना भला होगा कि जो प्रधानमंत्री इसे लागू करेगा,उसका दशकों तक भारत की जनता आभार मानेगी। इस नियम को लागू करने का विरोध वे जातिवादी और सांप्रदायिक लोग जरुर करेंगे,जो योग्यता-बल और चरित्र-बल की बजाय संख्या-बल के आधार पर ही अपनी राजनीति चलाते हैं लेकिन व्यापक जन-समर्थन के आगे उनकी बोलती बंद हो जाएगी। तीसरा,भारत सरकार यह लक्ष्य बनाए कि दक्षिण और मध्य एशिया के १७ देशों में महासंघ खड़ा करके अगले ५ वर्षों में १० करोड़ भारतीयों को वहां वह रोजगार दिलवाए। देखिए,फिर भारत महासंपन्न और सबल बनता है या नहीं ?

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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