डॉ.आभा माथुर
उन्नाव(उत्तर प्रदेश)
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केशव और यश के गाँव पास-पास थे। एक बार वहाँ एक मेला लगा। वे दोनों भी कुछ कमाने के उद्देश्य से मेले में गये। केशव ने एक बोरे में सस्ती रुई भर कर उसके ऊपर बढ़िया ऊन रख ली। दूसरी ओर यश ने एक बोरे में पुराने कपड़े भर कर ऊपर से कुछ रुई रख ली। रास्ते में दोनों की मुलाक़ात हुई। दोनों एक पेड़ के नीचे विश्राम करने को रुक गये और बातचीत करने लगे। केशव ने डींग हाँकी,-“मेरे बोरे में बढ़िया ऊन है।” यश भी कहाँ पीछे रहने वाला था। उसने भी शेख़ी मारी,-“मेरे बोरे में बढ़िया रुई है।”
दोनों ने एक सौदा किया। तय हुआ कि दोनों आपस में बोरे बदल लेंगे,क्योंकि ऊन अधिक मँहगी होती है,अतः यश केशव को एक रुपया नकद भी देगा,क्योंकि उस समय यश के पास एक रुपया नक़द नहीं थाl अत: निर्णय हुआ कि,एक रुपया बाद में दे दिया जायेगा। दोनों अपने-अपने मन में स्वयं को चतुर और दूसरे को मूर्ख समझ रहे थे।
जब यश और केशव ने अपने अपने घर जा कर लाये हुए बोरे उलट कर देखे तो उनकी समझ में आ गया कि दूसरे व्यक्ति ने उन्हें मूर्ख बना दिया है,पर मूर्ख तो उन्होंने भी दूसरे व्यक्ति को बनाया था,अत: कुछ कह नहीं सकते थे।
अगले दिन केशव यश के पास गया और बोला,-“ओ धूर्त तुमने मुझे धोखा दिया है। अब कम से कम मेरा एक रुपया तो दे दो।”
यश ने बिना घबराये हुए कहा,-“केशव,मैं तुम्हारा एक रुपया अवश्य दूँगा,पर ज़रा वह सोने के सिक्के निकालने में मेरी सहायता तो करो जो मैंने इस कुएं के तल में छुपा रखे हैं। बाद में हम दोनों उन रुपयों को बराबर-बराबर बाँट लेंगे।” यह सुन कर केशव रस्सी की सहायता से कुएं के अन्दर उतर गया। कुएं के अन्दर बैठा केशव,कुएं की कीचड़ और मिट्टी बाल्टी में भर देता और यश उसे बाहर खींच लेता। केशव को आशा थी कि इसी कीचड़ और मिट्टी में सोने के सिक्के दबे होंगे। हर बार बाल्टी ऊपर आने पर यश चिल्लाता,-“अभी सोने के सिक्के नहीं मिले।” शीघ्र ही केशव की समझ में आ गया कि यश उसे बेवकूफ़ बना कर और सोने के सिक्कों का लालच दिखा कर,उससे कुएं की सफ़ाई करवा रहा है। कुछ सोच कर उसने आवाज़ लगाई,-“सोने के सिक्कों का कलसा मिल गया।” यह सुन कर यश आश्चर्यचकित हो गया कि क्या वास्तव में कुएं में सोने के सिक्कों से भरा कलसा था! वह तो केशव को मूर्ख बना कर कुएं की सफ़ाई करवा रहा था। उसने सोचा कि कलसा ऊपर आने के बाद वह रस्सी को कुएं में ही गिरा देगा,जिससे केशव ऊपर न आ सके,परन्तु उसको बहुत ही आश्चर्य हुआ जब उसने बाल्टी में सोने के सिक्कों का कलसा देखने के स्थान पर कीचड़ में लथपथ केशव को बैठे देखा।
दोनों में फिर लड़ाई शुरु हो गई। शीघ्र ही रात हो गई और ठंड से काँपता हुआ केशव,अगले दिन फ़ैसला करने का विचार कर के अपने घर चला गया। यश जानता था कि दूसरे दिन केशव आयेगा,अत: उसने एक तरकीब सोची। उसने अपनी पत्नी को समझाया,-“केशव को आता देख कर मैं चादर ओढ़ कर लेट जाऊँगा और तुम रोना धोना शुरू कर देना। मुझे मृत समझ कर केशव लौट जायेगा और इस तरह मैं एक रुपया देने से बच जाऊँगा।”
अगली सुबह जब केशव यश के घर पहुँचा और उसने यश को चादर ओढ़ कर लेटे तथा यश की पत्नी को विलाप करते पाया तो वह यश की चाल को समझ गया। वह चिल्ला-चिल्ला कर गाँव वालों को बुला लाया। उसने कहा,-“मेरे मित्र का स्वर्गवास हो गया है। कृपया उसका अन्तिम संस्कार करने में सहायता करिये।” गाँव वालों को आता देख कर यश की पत्नी चिल्लाई,-“भाग जाइये आप सब। अपने पति के अन्तिम संस्कार का प्रबन्ध मैं स्वयं कर लूँगी।” गाँववालों ने समझा कि,दु:ख की अधिकता से उसका मस्तिष्क काम नहीं कर रहा है। जब वे सब यश को लेकर श्मशान भूमि में पहुँचे तो केशव ने कहा,-“अँधेरा हो जाने के कारण अन्तिम संस्कार अब कल ही हो पायेगा। रात में शव को अकेला नहीं छोड़ा जा सकता,अत: रात में मैं यहाँ रुकूँगा।” यह सुन कर गाँव वाले वहाँ से चले गये। तब केशव ने यश से कहा,-“अब बहानेबाज़ी छोड़ो और मेरा एक रुपया मुझे दे दो।” तभी वहाँ से चोरों का एक दल निकला। एक व्यक्ति को चिता पर लेटे हुए और दूसरे को उससे बात करते हुए देख कर,वे उन दोनों को भूत समझे। भूतों से डर कर वे तेज़ी से भाग निकले। हबड़ा-तबड़ी में उनके हाथ से वह गठरी भी गिर गई,जिसमें चुराये हुए गहने और रुपये थे। चोरों के दल के जाने के बाद केशव और यश ने उन गहनों और रुपयों को आपस में बराबर-बराबर बाँट लिया।बँटवारे के बाद केशव ने यश से अपना एक रुपया माँगा,जो यश को देना पड़ा। सवेरा होने पर वे दोनों गाँव को लौट गये और गाँववालों को बताया कि,रात में यश का मृत शरीर पुन: जीवित हो गया था। गाँव वालों ने इस कहानी को सच मानते हुए ईश्वर की लीला पर आश्चर्य प्रकट किया। यश की पत्नी भी ख़ुश थी,क्योंकि उसका पति उसे वापस मिल गया था।
परिचय–डॉ.आभा माथुर की जन्म तारीख १५ अगस्त १९४७ तथा जन्म स्थान बिजनौर (उत्तर प्रदेश)हैl आपका निवास उन्नाव स्थित गाँधी नगर में हैl उन्नाव निवासी डॉ.माथुर की लेखन विधा-कविता,बाल कविताएं,लेख,बाल कहानियाँ, संस्मरण, लघुकथाएं है। सामाजिक रुप से कई संगठनों से जुड़कर आप सक्रिय हैं। आपकी पूर्ण शिक्षा फिलासाफी ऑफ डॉक्टरेट है। कार्यक्षेत्र उत्तर प्रदेश है। सरकारी नौकरी से आप प्रथम श्रेणी राजपत्रित अधिकारी पद से सेवानिवृत्त हुई हैं। साझा संग्रह में डॉ.माथुर की कई रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। साथ ही अनेक रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हैं। सामाजिक मीडिया समूहों की स्पर्धाओं में आप सम्मानित हो चुकी हैं। इनकी विशेष उपलब्धि आँग्ल भाषा में भी लेखन करना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य आत्म सन्तुष्टि एवं सामाजिक विसंगतियों को सामने लाना है, जिससे उनका निराकरण हो सके। आपमें दिए गए विषय पर एक घन्टे के अन्दर कविता लिखने की क्षमता है। अंग्रेज़ी भाषा में भी लिखती हैं।