कुल पृष्ठ दर्शन : 166

गणतंत्र-गर्वतंत्र होकर चिंतातंत्र

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
**********************************************************************


अपने ७१ वें वर्ष में भारत का गणतंत्र खुद पर गर्व करे या चिंता करे ? सोचता हूँ कि वह दोनों करे। गर्व इसलिए करे कि अगर हम एशिया और अफ्रीका के देशों पर नज़र डालें तो हमें मालूम पड़ेगा कि उन सबमें भारत बेजोड़ है। इन लगभग सभी देशों के संविधान तीन-तीन चार-चार बार बदल चुके हैं,इन ज्यादातर देशों में कई बार तख्ता-पलट हो चुके हैं,इनमें कई लोकतंत्र फौजतंत्र बन चुके हैं और फौजतंत्र लोकतंत्र बनने की कोशिश कर रहे हैं,कई देश संघात्मक से एकात्मक और एकात्मक से संघात्मक बनने लगे हैं लेकिन भारत का संविधान है कि सत्तर साल गुजर जाने पर भी ज्यों का त्यों है। उसके मूल स्वरुप में कोई बदलाव नहीं हुआ है। हाँ, १९७५-७७ के आपातकाल ने जरुर इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया था लेकिन भारत की जनता ने हस्तक्षेप करनेवालों को कड़ा सबक सिखाया था। हमारे संविधान में लगभग सवा सौ संशोधन हो गए हैं,लेकिन उसका मूल स्वरुप अक्षुण्ण हैं। उसके संशोधन उसके लचीले होने का प्रमाण हैं। दूसरी बात जो गर्व के लायक है,वह यह कि आजादी के बाद देश के पूर्व,पश्चिम,उत्तर और दक्षिण में कई राज्य भारत से अलग होना चाहते थे,पर आज नागालैंड,पंजाब,कश्मीर और तमिलनाडु में ऐसी कोई आवाज सुनाई नहीं पड़ती। भारत की संपन्नता,शक्ति और एकता पहले से अधिक बलवती हो गई है। यों भी भारत दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश है लेकिन अब चीन और भारत-एशिया के दो महाशक्ति राष्ट्र माने जा रहे हैं। भारत इस पर गर्व कर सकता है लेकिन सत्तर या बहत्तर साल गुजरने के बावजूद भारत में गरीबी,बेरोजगारी,अशिक्षा और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। भारत में आज तक एक भी सरकार ऐसी नहीं बनी है,जिसे जनता के ५१ प्रतिशत मत मिले हैं। वर्तमान सरकार भी सिर्फ ३७ प्रतिशत मतों से बनी सरकार है। भारत की चुनाव पद्धति में बुनियादी सुधार की जरुरत है। दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव होता जा रहा है। देश में भय, आतंक और अंविश्वास बढ़ रहा है। करोड़ों नागरिकों की बुनियादी जरुरतें पूरी नहीं हो पातीं और मुट्ठीभर लोग सम्पन्नता के हिमालयों पर चढ़ते चले जा रहे हैं। इसीलिए,हमारा गणतंत्र गर्वतंत्र होते हुए भी चिंतातंत्र बना हुआ है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

Leave a Reply