राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
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बीत गया है बीस का कहर,
भरने लगी गली-गली शहर।
भूल गए सावधानी की डगर,
गया नहीं है कोरोना का कहर।
आते-जाते लोगों के संग,
देखा गया कोरोना का रंग।
रंग अब बहुत गहराया है,
पुनः कोरोना हमें डराया है।
कोरोना को हम दे रहे थे मात,
देते-देते सावधानी का छूटा साथ।
देखो जी अब बिगड़ गई है बात,
कोरोना फिर लगाने लगा है घात।
घात से हमें नहीं कभी डरना है,
सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना है।
नियमों का पालन हमें करना है,
कोरोना से फिर अब हमें लड़ना है।
हमें बेकार न बाहर जाना है,
परिवार संग ही हमें रहना है।
दूसरों से हाथ न मिलाकर,
मन से मन हमें मिलाना है।
२०२० बीता है परेशानी में,
ढील मत दो अब सावधानी में।
देखो २०२१ में पड़ न जाए रोना,
पुनः लौटकर आ गया है कोरोना॥
परिचय–साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।