ललिता पाण्डेय
दिल्ली
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…
फागुन आया,फागुन आया,
हर मन में हर्ष और उल्लास छाया
कुपित मन का शोधन कर,
बालपन वापस लाया।
फागुन आया,फागुन आया,
जीवन के रंग वापस लाया…॥
भीतर का नन्हा-सा बालक,
देख रंगों की थाल
उड़ चला उन्मुक्त गगन में,
ले पिचकारी आज फिर से
भिगो आक्रोश को अपने,
बन गया गुजिया-सा मीठा।
फागुन आया,फागुन आया,
जीवन के रंग वापस लाया…॥
सुना नवयुवकों को लोक गीत,
सभ्यता-संस्कृति के रंग में डुबो दिया
फागुन ने चकाचौंध-सी जिंदगी में,
रंग उमंगों का भर दिया
बहा दिया सब-कुछ,
इस होली की बौछार संग
फागुन ने सबको एकता के सूत्र में पिरो दिया।
फागुन आया,फागुन आया,
जीवन के रंग वापस लाया…॥
हो रही है होलियाँ,
गा रहे हैं मंगल गीत
घर-घर जाकर,
खुशियों में सबके,खुश हो रहे हैंप्रेम राधा-कृष्ण सा हो,
मिलकर सब फागुन का स्वागत कर रहे हैं।
फागुन आया,फागुन आया,
जीवन के रंग वापस लाया…॥