बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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साजन से सजनी कहे,मिलने को बेताब।
मन मेरा लगता नहीं,देखे सुन्दर ख्वाब॥
आया मौसम प्यार का,बिखरे रंग अनेक।
साजन प्यारा है लगे,वो लाखों में एक॥
साजन बिन सजनी नहीं,इक-दूजे का साथ।
कस्में-वादें कर चले,लेकर अपने हाथ॥
सपने सुन्दर साजते,साजन सजनी संग।
मीठा-सा अहसास है,पुलकित होते अंग॥
चैन नहीं साजन बिना,दिल को नहीं करार।
मन को भाता कुछ नहीं,साजन बिन संसार॥