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भाग-८……….
`शांति निकेतन` यात्रा और कंकालितला मंदिर के दर्शन के बाद अगला लक्ष्य भुवनेश्वर का था,जहां के कई प्रमुख स्थल हमारी जिज्ञासा के केन्द्र में थे…l सुबह ८:३० बजे हम ‘इंटरसिटी एक्सप्रेस’ से गुस्करा से हावड़ा के लिए रवाना हुए…बर्दवान स्टेशन होते हुए यह ट्रेन १२ बजे हावड़ा पहुंची। हावड़ा जंक्शन के ऊपरी मंजिल पर स्थित प्रतीक्षालय की व्यवस्था अच्छी है…इसके लॉन से हावड़ा ब्रिज की खूबसूरती को देखना भी अच्छा लगता है…l हावड़ा से ‘जनशताब्दी एक्सप्रेस’ दोपहर में १:३० बजे चलकर रात ८:३० बजे तक भुवनेश्वर पहुंची। भारतीय रेल जनशताब्दी के रूप में यात्रियों को अच्छी सुविधा देती है। पूरी ट्रेन में चेयरकार होने के कारण इसमें अधिकतम यात्रियों को सीट उपलब्ध हो जाती है। भुवनेश्वर १९४८ में ओडिसा की राजधानी बना। इसके पहले यह कलिंग की राजधानी रह चुका था। लिंगराज मंदिर, परशुरामेश्वर मंदिर और मुक्तेश्वर मंदिर यहां के प्रसिद्ध मंदिरों में हैं। कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया `शांति स्तूप` भी शहर के दर्शनीय स्थलों में है। भुवनेश्वर यानी `ईश्वर का संसार`…वाकई मंदिरों का शहर है यह। विशेष रूप से लिंगराज मंदिर की चर्चा करूंगा…l इस प्राचीन मंदिर को जगन्नाथ पुरी का सहायक शिव मंदिर माना जाता हैl हालांकि,इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप १०९०-११०४ ई. में बना,लेकिन इसके कुछ हिस्से १४०० वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं। इस मंदिर का वर्णन छठी शताब्दी के लेखों में भी मिलता है। इसे ललाटेडुकेशरी (ललाट इंदु केशरी) ने ६१५-६५७ ई. में बनवाया था। वास्तुशिल्प की दृष्टि से मंदिर की बनावट उत्कृष्ट है,और यह भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। १८० फीट ऊँचे इस मंदिर में आधी मूर्ति भगवान शिव की और आधी मूर्ति भगवान विष्णु की है। दोनों के रूप को आधा-आधा मिलाकर पूर्ण रूप दिया गया है। इस त्रिभुवनेश्वर रूप को ‘हरिहर’ भी कहा जाता है। यह मंदिर अपनी अनुपम स्थापत्य कला के लिए भी प्रसिद्ध है। बनावट की दृष्टि से भी अन्य भारतीय मंदिरों से अलग नजर आता है। यह नीचे तो प्रायः सीधा तथा समकोण है,किन्तु ऊपर पहुँचकर धीरे-धीरे वक्र होता हुआ शीर्ष पर वर्तुल दिखाई देता है। मंदिर के पार्श्व भित्तियों पर सुन्दर नक्काशी की गई है। मुख्य मंदिर के साथ गणेश,कार्तिकेय तथा गौरी के ३ छोटे मन्दिर भी जुड़े हुए हैं। गौरी मंदिर में पार्वती की काले पत्थर की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के चतुर्दिक गज सिंहों की मूर्तियाँ शोभायमान हैं। धार्मिक मान्यता है कि लिट्टी तथा वसा नाम के २ दुर्दांत राक्षसों का वध देवी पार्वती ने यहीं पर किया था। संग्राम के बाद उन्हें प्यास लगी तो शिव जी ने कूप बनाकर सभी पवित्र नदियों को योगदान के लिए बुलाया। वह बिन्दूसागर सरोवर मंदिर के समीप ही स्थित है। भुवनेश्वर पूर्वोत्तर भारत में शैव सम्प्रदाय का मुख्य केन्द्र भी रहा है। कहते हैं कि मध्य युग में यहाँ ७ हजार से अधिक मंदिर और पूजास्थल थे,जिनमें से अब लगभग पाँच सौ ही शेष बचे हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार के अंदर प्रवेश करते ही एक विशालकाय त्रिशूल के दर्शन होते हैं। मंदिर के गुंबद के ऊपर लगे लाल और सफेद झंडे को ग्रहों के हिसाब से दिन में कई बार बदला जाता है। और भी कई चीज़ें हैं यहां,जिन्हें बारीकी से देखने पर सनातन धर्म की एक नई दुनिया खुलती है…l प्रवेश द्वार के अंदर स्थित दुकान से एक डलिया में फूलमाला,प्रसाद और एक पात्र में दूध लेकर हमने मंदिर परिसर में प्रवेश किया…मुख्य मंदिर में पहुंचने से पहले नंदी महाराज के दर्शन हुए। अंदर बड़ी संख्या में भक्तगण उपस्थित थे..l पुजारी ने हमारे हाथों से प्रसाद लेकर गर्भगृह में समर्पित किया…एक निर्धारित स्थल पर दूध एवं जल से अभिषेक कराया…l बाहर निकलकर बारी-बारी से हमने सभी मंदिरों के दर्शन किए…l भगवान शिव के विभिन्न रूपों के साथ अन्य देवी-देवताओं के १०८ छोटे-बड़े मंदिर मुख्य मंदिर के प्रांगण में स्थित हैं…l इस मंदिर का दर्शन और इसके सभी संभागों का अवलोकन अपने-आप में एक संपूर्ण यात्रा है…l