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रिश्तों की डिजाइन

डॉ.सोना सिंह 
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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रिश्तों का स्वेटर बुनकर जालीदार,
डिजाइन बनाकर झालरदार लेस लगाती हूँ।
हर रोज रिश्ते को देती हूँ नया नाम,
बुनती हूँ एक नया रिश्ता सुबह और शाम।

हर रिश्ते का रंग जुदा-जुदा है अलहदा,
कभी हरा तो कभी नीला-पीला।
कभी रिश्ता हो जाता है गुलाबी,
तो कभी करती हूँ लाल रिश्तों की कढ़ाई।

किसी रिश्ते की चादर पर बुनती हूँ,
बेल बूटे…
तो किसी दुपट्टे के सिरे से,
बांधती हूँ फिर रिश्ता नया।

फिर अपने मन की सुनती हूँ,
रिश्तों के इस कसीदे में टांकती हूँ
सितारे रंग-बिरंगे सुनहरे।

बने रहते हैं कुछ रिश्ते साथ मेरे,
कुछ हो जाते हैं मीठे
पुराने नींबू के अचार की तरह,
तो किसी में खटास होती है
नए आम की अचार की तरह।

रिश्तों के इस रस में याद आता है,
एक जुलाहा ताने-बाने वाला।
क्या बुनता है वह ?
जाल या चादर रिश्तों की।

सुबह लगाता है फिर नया धागा,
शाम होते समेट लेता है,
तन पर सजा लेता है।
फिर से एक नया रिश्ता॥

परिचय-डॉ.सोना सिंह का बसेरा मध्यप्रदेश के इंदौर में हैl संप्रति से आप देवी अहिल्या विश्वविद्यालय,इन्दौर के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में व्याख्याता के रूप में कार्यरत हैंl यहां की विभागाध्यक्ष डॉ.सिंह की रचनाओं का इंदौर से दिल्ली तक की पत्रिकाओं एवं दैनिक पत्रों में समय-समय पर आलेख,कविता तथा शोध पत्रों के रूप में प्रकाशन हो चुका है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के भारतेन्दु हरिशचंद्र राष्ट्रीय पुरस्कार से आप सम्मानित (पुस्तक-विकास संचार एवं अवधारणाएँ) हैं। आपने यूनीसेफ के लिए पुस्तक `जिंदगी जिंदाबाद` का सम्पादन भी किया है। व्यवहारिक और प्रायोगिक पत्रकारिता की पक्षधर,शोध निदेशक एवं व्यवहार कुशल डॉ.सिंह के ४० से अधिक शोध पत्रों का प्रकाशन,२०० समीक्षा आलेख तथा ५ पुस्तकों का लेखन-प्रकाशन हुआ है। जीवन की अनुभूतियों सहित प्रेम,सौंदर्य को देखना,उन सभी को पाठकों तक पहुंचाना और अपने स्तर पर साहित्य और भाषा की सेवा करना ही आपकी लेखनी का उद्देश्य है।

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