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श्री राधारानी जी

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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राधा अष्टमी(२६ अगस्त)विशेष……

श्री राधारानी जी के श्री चरणों में साष्टांग प्रणामl जय जगत प्रसूता आदि महाशक्ति श्री कृष्ण प्रणाधिका श्री राधारानी जी की जय। पुराणों के वर्णन के अनुसार ज्ञात होता है कि,-जब-जब विश्व ब्रह्मांड अत्याचारियों के अत्याचार से भयभीत होकर अशांत व प्रतारित हुआ है,तब-तब जगत संसार की रक्षा करने हेतु ब्रह्मांड के सृष्टिकर्ता जगत पालक श्री विष्णु विभिन्न युगों में विश्व में अवतार रूप से अवतीर्ण हुए हैं। दुष्टों का दमन कर प्राणियों को भयमुक्त करते हुए सनातन धर्म को पुनर्प्रतिष्ठित करने के लिए अवतरित हुए हैं।

असुर कंस के अनाचार व अत्याचार से भयभीत होकर अशांत हुए जगत संसार,सनातन धर्म खतरे में,ऐसी परिस्थितियों में जगत रक्षार्थ एवं सनातन धर्म को रक्षाकारी परमपुरुष देवकी वासुदेव पुत्र यशोदा नन्दन,ब्रह्मांड के सृष्टिकर्ता,धारक,जगत पालक प्रेमरस की आनंदधारा को प्रवाहित करने के लिए पूर्ण उज्ज्वल कृष्णवर्ण अंग गोप बालक के रूप को धारण करते हुए श्री कृष्ण नाम से अपने लीला क्षेत्र ब्रजधाम(वृन्दावन)में अवतीर्ण हुएl
परम् पुरुष श्री विष्णु ने अपनी आनन्द रसमय लीला को प्रेमरस से परिपूर्ण करने के लिए निज दिव्य अंतरंग तेज से आदिशक्ति पूर्ण रसमयी,अति उज्ज्वल पूर्णशशी समप्रभा स्निग्धा,कमलकान्ति,प्रेमपूर्ण चंचल उज्ज्वल कृष्ण सुदीर्घ आँखें,मोती समोज्ज्वल दन्तपंति समयुक्ता,हेमांगी,कुंचित कृष्णघन सुकेशी किशोरी,सहास्यबदना,रम्य पूर्णानंदवती देवी का सृजन किया,जिनका आविर्भाव भाद्र शुक्लाष्टमी तिथि को ब्रजधाम में वृषभानु के कन्यारूप में राधारानी नाम से हुआ। पूर्ण यौवनवती गोपकन्या,विनोदिनी,रासलीला का मध्यमणि लास्यमयी आयान गोप की श्रीमती,श्री राधारानी। कृष्णप्रेम में पूर्ण समर्पिता सर्वत्यागी,सती साध्वी,तपस्विनी,विरहिणी श्री राधारानी।
ब्रजधाम से परवर्तीकाल में विश्व से कंस के त्रास से व्याप्त भय,अनाचार,अशांति का दमन कर विश्व में स्थायी शांति तथा सनातन धर्म को
पुनर्स्थापित कर कृष्णलीला को पूर्णरूप देने के लिए कृष्णप्रेम लीला के समताल में भी निर्बाध सहयोग प्रदात्री अकृपन आत्मसुखत्यागी आदिशक्ति राधारानी है। कालचक्र में यमुना के उस पार मथुरा में राजपाट,पटरानी पार्षदों से परिवेष्टित होकर राज्य शासन व प्रजापालन कार्य महाव्यस्त, न्यायदाता महाभारत का महानायक,कृष्णप्रेम विरह कंटकों से विरहिणी राधारानी से तिरस्कृत अभिशापित जगत पालक,जगत आराद्ध श्रीकृष्ण,तो ईधर यमुना तट पर कृष्ण ध्यान में निमग्न प्रतीक्षिणी विरहिणी एकाकी जगत प्रसूता राधारानी है-
`बिना राधाशक्ति के पूर्णशक्ति,
पूर्ण नहीं हो सकता कृष्ण कभी भी।

नवीनां हेमगौरांगीन पूर्णानन्दवतीं सतीम,
वृषभानुसुताम देवीं वन्दे राधा: जगतप्रसूमll

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

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