सविता सिंह दास सवि
तेजपुर(असम)
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सावन में थोड़ी
बावरी बनना,
अच्छा लगता है
पिस-पिस जाती,
फिर आस मन की
तेरे उखड़े-उखड़े
स्वभाव से पिया।
यूँ पिसकर भी,
मेहंदी सम महकना
अच्छा लगता है।
मन की सतह
रेगिस्तान बनी,
जेठ-आषाढ़ में
तपती रह गई
इच्छाएँ सारी।
फिर पावस में
हरे होंगे,
घाव विरह के
इस टीस को,
फिर से सहना
अच्छा लगता है!
सावन में थोड़ी
बावरी होना,
अच्छा लगता है!
व्याकुल हैं बदरा,
तेरे मन-आँगन में
बरसने को,
तुम ही ना दिखते।
आँखों में उजाला,
लिए मेरी राह तकते
इस उपेक्षा में भी
तुम्हें निकट मानना,
यह भाव भी
अच्छा लगता है!
सारे जग की
चिंता तुमको,
ना देखी कुम्हलाई
काया मेरी।
जतन सारे बेकार,
तुम्हारा सानिध्य
पाने का,
कमी है यह
जीवन की।
फिर भी तुममें,
संपूर्णता देखना
प्रेम अगर यही है,
तो प्रेम अच्छा लगता है।
सावन में थोड़ी,
बावरी बनना
अच्छा लगता है!!
परिचय-सवितासिंह दास का साहित्यिक उपनाम `सवि` हैl जन्म ६ अगस्त १९७७ को असम स्थित तेज़पुर में हुआ हैl वर्तमान में तेजपुर(जिला-शोणितपुर,असम)में ही बसी हुई हैंl असम प्रदेश की सवि ने स्नातक(दर्शनशास्त्र),बी. एड., स्नातकोत्तर (हिंदी) और डी.एल.एड. की शिक्षा प्राप्त की हैl आपका कार्यक्षेत्र सरकारी विद्यालय में शिक्षिका का है। लेखन विधा-काव्य है,जबकि हिंदी, अंग्रेज़ी, असमिया और बंगाली भाषा का ज्ञान हैl रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में जारी हैl इनको प्राप्त सम्मान में काव्य रंगोली साहित्य भूषण-२०१८ प्रमुख हैl श्रीमती दास की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार करना है। आपकी रुचि-पढ़ाने, समाजसेवा एवं साहित्य में हैl