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लांछन सह ना सकूँगा माई

सविता सिंह दास सवि
तेजपुर(असम)

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कामकाज बन्द,
हो गया माई
सुना है अब बहुत,
दिनों तक सब बन्द रहेगा
देश में ताला लगेगाl
दिहाड़ी मेरी,
गुजर-बसर माई
अपने पेट पर,
खींच कर गमछा
बांध लूंगाl
दो घूंट पानी से,
भूख-प्यास सब
मिटा लूंगा माई,
पर मुनिया अब
चलने लगी हैl
तेरे आँगन में,
खेलने लगी है
उसके भूख का,
क्या करूँगा माई ?
मुनिया की माँ,
कोई शिकायत ना
करती…
दो टूक बात से मेरे,
मन उदर सब भरतीl
ऐ! माई,अब मैं
गठरी बांध रहा हूँ,
मीलों पैदल चलने
की तैयारी कर रहा हूँl
गाँव में सबसे कहना,
मुझे बुखार,सर्दी,खाँसी
कुछ नहीं है,
वरना मैं इतनी दूर
जाने का सोचता कैसे!
अगर पहुंच पाया ना,
तेरे आँचल की छाँव तक
मेरे माथे से पसीना तू,
पोंछ देना माईl
हफ्तों की भूख,
तेरे हाथों के
एक निवाले से,
भर देना माईl
सह लूंगा सारे,
दर्द,तकलीफें
घर पहुंचने की ललक में,
बस बीमारी लेकर आया हूँ इस लांछन को,

सह ना सकूँगा माई…ll

परिचय-सवितासिंह दास का साहित्यिक उपनाम `सवि` हैl जन्म ६ अगस्त १९७७ को असम स्थित तेज़पुर में हुआ हैl वर्तमान में तेजपुर(जिला-शोणितपुर,असम)में ही बसी हुई हैंl असम प्रदेश की सवि ने स्नातक(दर्शनशास्त्र),बी. एड., स्नातकोत्तर(हिंदी) और डी.एल.एड. की शिक्षा प्राप्त की हैl आपका कार्यक्षेत्र सरकारी विद्यालय में शिक्षिका का है। लेखन विधा-काव्य है,जबकि हिंदी,अंग्रेज़ी,असमिया और बंगाली भाषा का ज्ञान हैl रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में जारी हैl इनको प्राप्त सम्मान में काव्य रंगोली साहित्य भूषण-२०१८ प्रमुख हैl श्रीमती दास की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार करना है। आपकी रुचि-पढ़ाने, समाजसेवा एवं साहित्य में हैl

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