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बसंत एक उमंग

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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वसंत पंचमी स्पर्धा विशेष …..

प्रात: गुनगुनाती धूप में चाय की प्याली के संग जब मैंने दिवाकर को अपनी सुनहली किरणों के साथ धीमे-धीमे आकाश में ऊपर उठते देखा,एक अदभुत अनुभूति अंतरंग को जैसे छू सी गई। सुनो जी,मधुऋतु आ गई,कितना सुखद लग रहा है न। हाँ आ तो गई है। थोड़ी ठण्ड कम हो गई है। नहीं जी! बसंत ऋतु प्रारम्भ हो गई है,आपको अनुभव नहीं हो रहा है। लग तो रहा है। बसंत ऋतु,मधुऋतु किसी भी नाम से पुकारें,इस नाम को सुनकर गुदगुदी-सी हुई न! उल्लास-सा अनुभव हो रहा है न आपको। घर से निकलिए,जरा चारों तरफ़ नजरें दौड़ाइए तो सही,अनुभव हुआ कुछ! प्रकृति ने सोलह श्रृंगार किया है,और आपको देखने का वक्त नहीं! धीमी बहती बयार भी तो कुछ कह रही है। इतनी भी जल्दी क्या है,दो पल ठहर तो जाइए। भाग-दौड़ की इस जिंदगी में आप कुछ भूल रहे हैं। कहते हैं और सत्य भी है कि,प्रकृति के साथ बिताए पल नई ऊर्जा,नई आशाएं,नए विचार,नई कृति से भिगो देते हैं,यह प्रेरणा देती है। प्रकृति हर वर्ष नया रूप,नवीन श्रृंगार ले कर आती है। सजती है,संवरती है,मुस्कुराती है,खिलखिलाती है,नृत्य करती है, मदहोश-सी हो जाती है,और सारी कायनात को मदहोश करने और खुशी बिखेरने को आतुर रहती है। यही नहीं,प्रकृति अपना कर्त्तव्य भी बखूबी निभाती है (यदि हम मानव उससे छेड़छाड़ न करें तो)-गुलाब, हरश्रृंगार,गेंदा,चमेली,डालिया कितने रंग-बिरंगे फूलों से बाग-बगीचे,गमले मुस्कुरा रहे हैं। वन में पलाश अपनी दमकती नारंगी आभा बिखेरते इठला-सा रहा है। उन्हें छूते हुए समेटने की इच्छा हो रही है ना! ये देखिए मधुकर कैसे पुष्पों पर मंडरा रहे हैं,और कितने प्यार से मधुपान कर रहे हैं। ये रंग-बिरंगी तितलियाँ पीछे क्यों रहे भला! याद है आपको! बचपन में तितलियों के पीछे इधर- उधर दौड़ना। न पकड़ आने पर मचलना,उन्हें पकड़ रंगीन पंखों को देख खुश होना(आजकल के बच्चे तितलियों को तो कम्पूटर या लैपटॉप पर ही देखते हैं।),फिर उन्हें छोड़ देना। ध्यान से देखिए,तितलियाँ नजर आएंगी।
खेतों की याद आती है आपको…? लहलहाती मचलती पीली सरसों की डालियाँ,धान,गेहूं,बाजरे की हरियाली,ऐसी सुंदरता जो आँखों को भली लगे। और चने के खेतों में जाकर हरे-हरे चने निकाल कर स्वाद ले लेकर खाना। याद है आपको कविता की पंक्तियाँ…’पीली सरसों ने दिया रंग,मधु लेकर आया बसंत…।
इधर नदियां (जिन्हें हम सब दूषित करने से बाज नहीं आते),झरने,ताल-तलैया में तरंगें पवन की छुअन से हौले-हौले अठखेलियाँ कर रही हैं। कोयल की कुहू-कुहू,बुलबुलों का चहचहाना,ये संगीत कर्णों को कितना मधुर लग रहा है। सारे पंछी अपने पंख फैलाए बड़े उत्साह से आकाश की ऊँचाइयाँ नापते हुए अपने कर्म पथ पर लगे हुए हैं। और चंचल नेत्रों से इधर-उधर देखती हिरनों की ये कुलांचें क्या कह रही हैं..,कुछ सुना आपने!वनों में,चिड़ियाघरों में देखने का प्रयत्न तो करिए,क्या जीव-जन्तु,क्या निर्जीव,बसंत ऋतु व प्रकृति के इस अनुपम सौंदर्य से सभी मंत्रमुग्ध हैं। ये संगम अद्भुत है न! कवि हरिवंशराय बच्चन की पंक्तियाँ-
‘बसंत दूत कुंज-कुंज कूकता,
बसंत राग कुंजकुंज फूंकता
पराग से सजी सुहाग मंजरी,
बसंत गोद में लसी प्रकृति परी
प्रणय सन्देश कुञ्ज-कुञ्ज गूंजता,
प्रणय स्वरुप को सदा पूजता,
कहा स्वरूपनी ने स्नेह से ढरी,
बसंत गोद में झुकी प्रकृति परी।’
श्रीकृष्णा ने सत्य कहा है कि ऋतुओं में मैं बसंत हूँ। उनके इस कथन को हृदय मस्तिष्क में संजोने की इच्छा होती है ना! जरा अपनी सारी इंद्रियों का स्पन्दन अनुभव तो करिए। कुछ सुना आपने…’ये किसने बांसुरी बजाई!’ कितनी मधुर धुन है। अब मान भी लीजिए,कृष्णा ने अपनी सुनहरी बांसुरी पे तान जो छेड़ी है। फिर हम गोपियाँ (पुरूष भी) इस सुर पर सम्मोहित ना हों,कैसे हो सकता है! राधारानी और कृष्णा के प्रेम को कौन नहीं जानता! स्नेह प्रेम के इस नृत्य पर मोहित हो सारा विश्व झूमता रहा है,और झूम रहा है पल-पल,जिसकी परिभाषा करना सम्भव नहीं है। इसने सबको किसी न किसी रूप में अपने बाहुपाश में जकड़ रखा है,और जब प्रेम है तो,हास-परिहास,मान-मनुहार,
समर्पण,त्याग कितने ही तरह के प्रणय के रूप हैं। इसीलिए तो,गोपालकृष्णा ने कहा- प्रेम शाश्वत है।
इस घड़ी कितनी ही शादियां हो रही हैं। इधर देखिए-नई नवेली दुल्हन सोलह श्रृंगार किए,अधरों पे लिए मधुर मुस्कान,नैनों में लिए कई सुंदर स्वप्न,अपने पिया के बाएं अंग में खड़ी कितनी प्यारी लग रही है। जरा काला टीका लगा दीजिए जी,नजर न लगे।
बसंत ऋतु का स्वागत ‘वैलेंटाइन डे’ के दिन करने की उत्सुकता बढ़ती जा रही है। अब तक तो आपने सोच ही लिया होगा कि,अपने प्रिय या प्रेयसी,या जीवनसाथी या प्रिय दोस्तों को क्या दिया जाए,या कैसे अपनी भावनाएं व्यक्त की जाए..! ठीक कहा न ? आपने देखा,आम्र की मंजरी लगने लगी है, और देखिए कोयलिया कुहू-कुहू पुकार रही है। ऐसे में कहाँ हो प्रिय ? हाय! इस नौकरी से तुम्हें थोड़ी छुट्टी नहीं…कि दो मीठे बोल बोल सको। कबसे नैन बिछाए बैठी हूँ… ‘चिट्ठी न कोई सन्देश,गए जाने कौन से देश…’ कहाँ हो जी ?
बसंत की ये जादूगरी किन नयनों,किस हृदय,किस उम्र को मुग्ध किए बिना रह सकती है। आश्चर्यचकित हैं हम सब प्रकृति के अनुपम सौंदर्य से,बसंत के आगमन से। ताल से ताल मिला,आप भी तो झूमिए जनाब।
वाणी की देवी विश्वरागिनी,विवेक विद्या बुद्धिदायिनी का आशीष आपने लिया होगा। हमारे भोलेबाबा शंकरजी व माता पार्वती के शुभ विवाह की शुभ घड़ी आई ही समझिए। जीवन को निरन्तर उत्तम तरह से जीने के लिए आंतरिक शक्ति,विश्वास और कर्मठता की आवश्यकता है हम सबको। कृपा प्रभु, कृपा माते।
देखिए तो सही किसी न किसी रूप में बसंत हमें अपने कर्त्तव्यों का भी बोध कराता रहता है। बसंत किसी एक के लिए नहीं आता,न प्रकृति किसी एक के लिए सवंरती है। ये हर निर्जीव,जीव,हर पशु-पक्षी,हर धर्म-जाति,हर उम्र के नारी-पुरुष सबके लिए एक ही रूप लेकर आती है। तो आइए,हम सब मिलकर नई आशा,विश्वास,ऊर्जा,एकता का बिगुल बजाते हुए प्रगति की मशाल लिए बसंत का हृदय से स्वागत करें और ईश्वर(जिस नाम से भी पुकारते हैं।) को हृदय से धन्यवाद दें।
क्या भूल रहे हैं आप! जाते-जाते मेरी शुभकामनाएँ तो लेते जाईए। फिर बात होगी,अभी बहुत कुछ कहना बाकी है-
‘हवा झुलाये डाले डाली,पंछी ने मीठी तान सुनाई
मधुर सुर छेड़े कृष्ण कन्हाई,प्रकृति ने ली अंगड़ाई!
लद गयी फूलों से डाल,डाल,प्राची में खोल निज दृगद्वार,
आयी बहार,आयी बहार!
लाली की डाली में जीवन की ग्रंथी खोल खोल,
झूमे देखो मदमस्त पवन,भौरें संग बनते सुगंध!
छलक रहा रस कलश,स्वर लय पर गूंजे आकाश!
आयी बहार,आयी बहार!
तन-मन में लिए अदभुत थिरकन,नुपूर छन- छन
राधारानी करे हास-परिहास।
जन-जन में जागा हर्ष उल्लास,
राग रास रंग रस सुगंध संग आया ऋतुराज बसंत,
आयी बहार,आयी बहार!!

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है

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