अपने-अनजाने

रेणू अग्रवालहैदराबाद(तेलंगाना)************************************ मुफ़लिसी में अपने अनजाने हुए जाते हैं।दौलत देख ग़ैर भी जाने पहचाने हुए जाते हैं। पढ़-लिख कर जब दौलत कमाने लगे बेटे,उनके बेढंग हौंसले मनमाने हुए जाते हैं।…

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औरत

रेणू अग्रवालहैदराबाद(तेलंगाना)************************************ हम क्यों सहन करते हैं सब-कुछ,मन का नहीं मिलता है जब कुछ। दया हम दिखाते दया के पात्र बन जाते,लोग देवी कहकर हमको ही छल जाते। औरत ही…

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वक़्त

रेणू अग्रवालहैदराबाद(तेलंगाना)************************************ वक़्त है बाक़ी जीवन सँवार लो अभी।अन्न के कंकर पानी से निथार लो अभी। जीवन का ताना-बाना अपने हाथ में नहीं,नाम लो रब का पाप को कटार दो…

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हमने इक़रार किया

रेणू अग्रवालहैदराबाद(तेलंगाना)************************************ उसने इज़हार किया हमने इक़रार किया।इस तरह से प्यार हमने यार किया। कोशिश नहीं की,न ही तकल्लुफ़ उठाया,हद इतनी थी नजरों से भी न इन्कार किया। उसकी आँखें…

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सच्चाई जान कर के चलो

रेणू अग्रवालहैदराबाद(तेलंगाना)************************************ वक़्त को स्वीकार कर के चलो।जीत नहीं,हार मानकर के चलो। गरज ख़त्म हुई अपने बेगाने हुए,तक़ाज़ा उम्र का काम कर के चलो। तुमने भी ख़ुशहाली देखी थी कभी,बेटे…

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जनता लाचार नहीं

रेणू अग्रवालहैदराबाद(तेलंगाना)************************************ पापियों को क्या धिक्कार नहीं।उनका जीना क्यों दुश्वार नहीं। सज्जन लोग क्यों चुप रह जाते हैं,सच बोलने का उनको अधिकार नहीं। जो देश खा रहे भीतर ही भीतर,क्या…

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इंतज़ार

रेणू अग्रवालहैदराबाद(तेलंगाना)************************************ कोई नहीं आने वाला।न दिल बहलाने वाला। चेहरों पर मुखौटे लगे हैं,सच नहीं दिखलाने वाला। रक़ीब है घर में छुपा हुआ,कौन है पहचानने वाला। अपनों की भीड़ में…

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मासूम माँ

रेणू अग्रवालहैदराबाद(तेलंगाना)************************************ अपने जब शत्रु हो जाते हैं,वो बड़े भारी पड़ जाते हैं।हारना तो निश्चित हो जाता हैहम बहुत बेबस हो जाते हैं।घर-घर महाभारत चल रही है,आज भाइयों के साथ-साथ,बहू…

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वक़्त दिखायेगा आईना

रेणू अग्रवालहैदराबाद(तेलंगाना)************************************ जीवन में मिलता मक्कार क्यों है।होते दोगले उसके व्यवहार क्यों है। बेचारी मासूम मछली काँटे में फंस गई,जिंदा होती मछली शिकार क्यों है। लूटने के लिये ज़ालिम ढूँढते…

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हरा-भरा इक गाँव

सुखमिला अग्रवाल ‘भूमिजा’मुम्बई(महाराष्ट्र)********************************************* घर-परिवार स्पर्धा विशेष…… जैसे सिमट गए जंगल,वैसे ही अपने परिवार।गला घोंटकर रिश्तों का,कर रहे कौन उपकार। किया निरंतर जंगल छोटा,सहनी पड़ी है रे मार।इसी तरह परिवार का,कभी…

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