उस घेरे को तोड़ दिया है

डॉ.अमर ‘पंकज’दिल्ली******************************************************** बंद किया था खुद को जिसमें उस घेरे को तोड़ दिया है,मतवादों का गोरख धंधा मैंने अब तो छोड़ दिया है। समता क्रांति मनुजता केवल लफ्ज़ नहीं हैं…

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सँभलकर देखता हूँ मैं

डॉ.अमर ‘पंकज’दिल्ली***************************************************** कड़ा पहरा है मुझ पर तो सँभलकर देखता हूँ मैं,बदन की क़ैद से बाहर निकलकर देखता हूँ मैं। कभी गिरना कभी उठना यही है दास्ताँ मेरी,बचा क्या पास…

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…पत्थर बनाया न होता

डॉ.अमर ‘पंकज’दिल्ली******************************************************** अगर मैं तेरे शह्र आया न होता,तो दिल को भी पत्थर बनाया न होता। उजड़ती नहीं ज़िंदगी हादसों से,अगर होश अपना गँवाया न होता। सँपोले के काटे तड़पता…

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कभी ढोता नहीं हूँ

डॉ.अमर ‘पंकज’दिल्ली******************************************************************** भीड़ में शामिल कभी होता नहीं हूँ,बोझ नारों का कभी ढोता नहीं हूँ। रात को मैं दिन कहूँ सच जानकर भी,क्यों कहूँ मैं ? पालतू तोता नहीं हूँ।…

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समझ तू खेल सत्ता का

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* समझ तू खेल सत्ता का मुक़द्दर बन के आया है, सियासी चाल है ये सब कलंदर बन के आया है। तुम्हें मालूम तो कुछ हो ज़माने…

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सुलझती ही नहीं रिश्तों की उलझन

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* हवाओं में जो उड़ते हैं कहाँ क़िस्मत बदलते हैं, बड़े नादान हैं जो चाँद छूने को मचलते हैंl फ़ज़ा में रंग है लेकिन नहीं रंगीन है…

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सुर्ख़ियाँ बनने लगीं

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* दूरियाँ घटने लगीं हैं, साज़िशें बढ़ने लगीं हैं। डालनी हैं बेड़ियाँ फिर, बंदिशें हटने लगीं हैं। आसमाँ खुश हो गया अब, बदलियाँ छँटने लगी हैं। बोलना…

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हम भीड़ से बचते रहे

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* (रचनाशिल्प:२२१२ २२१२) उनसे नहीं रिश्ते रहे, चुपचाप बस घुटते रहेl दुश्वारियाँ तो थीं मगर, बिंदास हम बढ़ते रहेl बेफ़िक्र मुझको देखकर, बाजू में सब चिढ़ते रहेl…

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ख़ता मेरी बताते

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* कभी सोचा न था हर पल मेरी अब जान जाएगी, तुम्हारी याद जीवन भर मुझे हरदम सतायेगी। ख़ता मेरी बताते इस कदर तुम दूर मत जाते,…

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मत ये सजा दीजिए।

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* मुद्दतों जो छिपाया,बता दीजिए, आग जिस्मो-ज़िगर की बुझा दीजिए। हमनशीं रूठकर दिल जलाती रही, पास उनको कोई फिर बुला दीजिए। गैर का दिल बसेरा बना आपका,…

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