अंधेरों का दर्द
अरशद रसूल, बदायूं (उत्तरप्रदेश) ********************************************************************* रूबरू जब कोई हुआ ही नहीं, ताक़े दिल पर दिया जला ही नहीं। ज़ुल्मतें यूं न मिट सकीं अब तक, कोई बस्ती में घर जला ही नहीं। बेजमीरों के अज़्म पुख़्ता हैं, ज़र्फ़दारों में हौंसला ही नहीं। नक़्श चेहरे के पढ़ लिये उसने, दिल की तहरीर को पढ़ा ही नहीं। … Read more