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खुशहाली लेकर लौटेगी गौरैया

अरशद रसूल,
बदायूं (उत्तरप्रदेश)
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नटखट बचपन में तरंगें पैदा करने के लिए गौरैया का नाम जरूर आता है। बच्चा गौरैया या ऐसी ही चिडि़ंयों को देखकर मचलता जरूर है। बात कोई बहुत ज्यादा पुरानी नहीं है। कोई एक-डेढ़ दशक पहले ज्यादातर घरों में गौरैया का घोंसला जरूर होता था। घोंसला न भी हो,तो यह इंसानी दोस्त के घर की मुंडेर पर आकर आकर बैठ जाती थी,फिर इधर-उधर फुदक कर उड़ जाती थी। खेत-खलिहान,बस-रेलवे स्टेशनों पर इनके झुंड नजर आते थे। पुराने जमाने में गौरैया को खुशी, फुर्ती,आजादी,रिवायत,संस्कृति का प्रतीक माना जाता था। अब इस पर ऐसा संकट आया है कि यह विलुप्त हो चुकी है और बमुश्किल नजर आती है। कुछ पक्षी प्रेमी आज भी इसको संरक्षण देने और बचाने में लगे हैं।
खत्म होने के कारण-
गौरैया को सबसे ज्यादा विकिरण(रेडिएशन)ने नुकसान पहुंचाया है। चूंकि,मोबाइल जिंदगी की अहम जरूरत बन चुका है,इसलिए मजबूत संकेत के लिए उच्च आवृत्ति के टॉवर लगाए जा रहे हैं। पर्यावरणविद बताते हैं कि टॉवर से निकलने वाले विकिरण में ऐसी क्षमता होती है,जिससे गौरैया के अंडे नष्ट हो जाते हैं। वाहनों की बढ़ती तादाद भी इनको नष्ट करने में कम जिम्मेदार नहीं है। वाहनों में जलने वाले ईंधन से निकलने वाला मेथिल नाइट्रेट छोटे कीटों के लिए खतरनाक है। यही कीट इनके चूजों का खाना होते हैं। बढ़ती आबादी की मांग को देखते हुए खेत कांक्रीट के जंगलों में बदल रहे हैं। कच्चे मकान तो रहे नहीं,पक्के मकानों को भी इस तरह बनाया जा रहा है कि उनमें छज्जे,ताख या और कोई गुंजाइश ही नहीं बची है। इन्हीं जगहों पर गौरैया अपना आशियाना बनाती थी।
‘लाल’ सूची में शामिल-
घर क्या,बागान क्या,हर जगह गौरैया की तादाद घट रही है। हालांकि,सरकार इसके वापस आने की तमाम कोशिशें कर रही है। गौरैया को संकटग्रस्त प्रजाति के पक्षियों की ‘लाल’ सूची(रेड लिस्ट) में शामिल किया गया है। इसका मकसद यही है कि,जनमानस का ध्यान इसको बचाने की तरफ खींचा जाए।
दिल्ली में राजकीय पक्षी-
गौरैया पर अरसे से खतरा मंडरा रहा है। इसको ध्यान में रखकर सरकारों ने इसके संरक्षण की कोशिशें शुरू कर दी हैं। दिल्ली सरकार ने तो गौरैया का आस्तित्व बचाने के लिए इसको राजकीय पक्षी घोषित कर दिया है। अन्य सरकारें भी ध्यान दे रही हैं।
महादेवी वर्मा की पसंद-
उत्तर भारत में गौरैया का खास महत्व है। यह यहां की संस्कृति में अच्छी तरह रची-बसी है। हिन्दी की मशहूर लेखिका व कवियित्री महादेवी वर्मा ने अपनी कहानी ‘गौरैया’ में इसका महत्व बताया है। उन्होंने शहरी जीवन को समृद्ध करने के लिए गौरैया के लौट आने की कामना की है।

परिचय-अरशद रसूल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला बदायूं (उ.प्र.)में है। ८ जुलाई १९८१ को जिला बदायूं के बादुल्लागंज में जन्मे अरशद रसूल को हिन्दी,उर्दू,अंग्रेजी, संस्कृत एवं अरबी भाषा का ज्ञान है। एमए, बीएड,एमबीए सहित ग्रामीण विकास में स्नातकोत्तर डिप्लोमा,मुअल्लिम उर्दू एवं पत्रकारिता में भी आपने डिप्लोमा हासिल किया है। इनका कार्यक्षेत्र-संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत ईविन परियोजना में (जिला प्रबंधक) है। सामाजिक गतिविधि में आप संकल्प युवा विकास संस्थान के अध्यक्ष पद पर रहते हुए समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों के खिलाफ मुहिम, ‘कथित’, संकुचित धार्मिक विचारधारा से ऊपर उठकर देश और सामाजिकता को महत्व देने में सक्रिय होकर रचनाओं व विभिन्न कार्यक्रमों से ऐसी विचारधारा के लोगों को प्रोत्साहित करते हैं, साथ ही स्वरोजगार,जागरूकता, समाज के स्वावलंबन की दिशा में विभिन्न प्रशिक्षण-कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं। आपकी लेखन विधा-लघुकथा, समसामयिक लेख एवं ग़ज़ल सहित बाल कविताएं हैं। प्रकाशन के तौर पर आपके नाम -शकील बदायूंनी (शख्सियत और फन),सोजे वतन (देशभक्ति रचना संग्रह),प्रकाशकाधीन संकलन-कसौटी (लघुकथा),आजकल (समसामयिक लेख),गुलदान (काव्य), फुलवाऱी(बाल कविताएं)हैं। कई पत्र-पत्रिका के अलावा विभिन्न अंतरजाल माध्यमों पर भी आपकी रचनाओं का प्रकाशन जारी है। खेल मंत्रालय(भारत सरकार)तथा अन्य संस्थाओं की ओर से युवा लेखक सम्मान,उत्कृष्ट जिला युवा पुरस्कार,पर्यावरण मित्र सम्मान,समाज शिरोमणि सम्मान तथा कलम मित्र सम्मान आदि पाने वाले अरशद रसूल ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-बहुधा आकाशवाणी से वार्ताओं-रचनाओं का प्रसारण है। लेखनी का उद्देश्य-रचनाओं के माध्यम से समाज के समक्ष तीसरी आँख के रूप में कार्य करना एवं कुरीतियों और ऊंच-नीच को मिटाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कबीर,मुशी प्रेमचंद, शकील बदायूंनी एवं डॉ. वसीम बरेलवी तो प्रेरणापुंज-खालिद नदीम बदायूंनी,डॉ. इसहाक तबीब,नदीम फर्रुख और राशिद राही हैं। आपकी विशेषज्ञता-सरल और सहज यानी जनसामान्य की भाषा,लेखनी का दायरा आम आदमी की जिन्दगी के बेहद करीब रहते हुए सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करता है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“भारत एक उपवन के समान देश है,जिसमें विभिन्न भाषा, मत,धर्म के नागरिक रहते हैं। समता,धर्म और विचारधारा की आजादी इस देश की विशेषता है। हिन्दी आमजन की भाषा है, इसलिए यह विचारों-भावनाओं की अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट माध्यम है। इसके बावजूद आजादी के ६० साल बाद भी हिन्दी को यथोचित स्थान नहीं मिल सका है। इसके लिए समाज का बुद्धिजीवी वर्ग और सरकारें समान रूप से जिम्मेदार हैं। हिन्दी के उत्थान की सार्थकता तभी सिद्ध होगी,जब भारत में हिन्दी ऐसे स्थान पर पहुंच जाए,कि हिन्दी दिवस मनाने की जरूरत नहीं रहे।”

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