गंगा की दुर्दशा
दीपक शर्मा जौनपुर(उत्तर प्रदेश) ************************************************* हे हिमतरंगिणी भगवती गंगे निर्मल नवल तरंगें, मैंने देखा था तुम्हें निकलते हुए हिमालय की गोद से अति चंचल, मधुर शीतल, धँवल चाँदनी-सी सुंदर। भगीरथ के दुर्गम पथ पर लहराती चली जा रही थी, पर क्या पता था कि मंजिल तक पहुँचते-पहुँचते, तू इतनी शिथिल और मलिन हो जाएगी। हे … Read more