साँस तू अब संभलना छोड़ दे

गोविन्द राकेश दलसिंहसराय (बिहार) *************************************************************** साँस तू अब संभलना छोड़ दे, दिल मेरा तू भी घड़कना छोड़ दे। बाग़ में अब फूल खिलते ही नहीं, फिर तो ऐ तितली मचलना छोड़ दे। रोशनी दिखती नहीं अब चार सू, घर से अब बाहर निकलना छोड़ दे। क्या पता वो सच ही बोले अब यहाँ, झूठ के … Read more

ज़रा और भी कुछ निखर जाऊँ मैं

गोविन्द राकेश दलसिंहसराय (बिहार) *************************************************************** ज़रा और भी कुछ निखर जाऊँ मैं, सभी के दिलों में उतर जाऊँ मैं। जिधर खार ही फूल-सा लग रहा, उसी रास्ते से गुज़र जाऊँ मैं। है शह्र हर तरफ़ पत्थरों-सा यहाँ, तभी सोचता हूँ किधर जाऊँ मैं। मिला देवता मंदिरों में नहीं, इबादत करूँ या कि घर जाऊँ मैं। … Read more

झूठ ही मुस्कुरा दिया होगा

गोविन्द राकेश दलसिंहसराय (बिहार) *************************************************************** झूठ ही मुस्कुरा दिया होगा। दर्द दिल का छुपा दिया होगा। आख़िरी साँस थमने से पहले, हाथ अपना हिला दिया होगा। पाँव तो उठ सका नहीं उसका, भूख ने भी सता दिया होगा चीख़ भी ज़़ोर से नहीं पाया, आह को भी दबा दिया होगा। आँख उसकी हुई ज़रा-सी नम, … Read more

आपको ढूंढता किधर साहब

गोविन्द कान्त झा ‘गोविन्द राकेश’ दलसिंहसराय (बिहार) *************************************************************** मैं उधर से गया ग़ुजर साहब, थी मनाही जहाँ जिधर साहब। आसमाँ में ही हैं उड़े फिरते, आपको ढूंढ़ता किधर साहबl शाम ढलते नहीं निकलता अब, आज भी तो लगे है डर साहबl हमको गुमनाम ही रखा जब तो, आता फिर कैसे मैं नज़र साहबl चौड़ी तो … Read more