साँस तू अब संभलना छोड़ दे

गोविन्द राकेश दलसिंहसराय (बिहार) *************************************************************** साँस तू अब संभलना छोड़ दे, दिल मेरा तू भी घड़कना छोड़ दे। बाग़ में अब फूल खिलते ही नहीं, फिर तो ऐ तितली मचलना…

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ज़रा और भी कुछ निखर जाऊँ मैं

गोविन्द राकेश दलसिंहसराय (बिहार) *************************************************************** ज़रा और भी कुछ निखर जाऊँ मैं, सभी के दिलों में उतर जाऊँ मैं। जिधर खार ही फूल-सा लग रहा, उसी रास्ते से गुज़र जाऊँ…

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झूठ ही मुस्कुरा दिया होगा

गोविन्द राकेश दलसिंहसराय (बिहार) *************************************************************** झूठ ही मुस्कुरा दिया होगा। दर्द दिल का छुपा दिया होगा। आख़िरी साँस थमने से पहले, हाथ अपना हिला दिया होगा। पाँव तो उठ सका…

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आपको ढूंढता किधर साहब

गोविन्द कान्त झा 'गोविन्द राकेश' दलसिंहसराय (बिहार) *************************************************************** मैं उधर से गया ग़ुजर साहब, थी मनाही जहाँ जिधर साहब। आसमाँ में ही हैं उड़े फिरते, आपको ढूंढ़ता किधर साहबl शाम…

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