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ज़रा और भी कुछ निखर जाऊँ मैं

गोविन्द राकेश
दलसिंहसराय (बिहार)

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ज़रा और भी कुछ निखर जाऊँ मैं,

सभी के दिलों में उतर जाऊँ मैं।

जिधर खार ही फूल-सा लग रहा,

उसी रास्ते से गुज़र जाऊँ मैं।

है शह्र हर तरफ़ पत्थरों-सा यहाँ,

तभी सोचता हूँ किधर जाऊँ मैं।

मिला देवता मंदिरों में नहीं,

इबादत करूँ या कि घर जाऊँ मैं।

मेरे झूठ ने चोट दी है उसे,

ज़रा बोलकर सच सुधर जाऊँ मैं॥

परिचय-गोविन्द कान्त झा का साहित्यिक नाम `गोविन्द राकेश` हैl १५ जनवरी १९५५ को जिला-मधुबनी (बिहार) में जन्मे श्री झा वर्तमान में दलसिंहसराय (बिहार) में रहते हैंl स्थाई पता भी यही हैl हिन्दी,मैथिली, अंग्रेजी तथा उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले गोविन्द राकेश की पूर्ण शिक्षा-बी.एससी. और एल.एल.बी. हैl कार्यक्षेत्र में पूर्व उप निदेशक (सूचना तकनीक-कृषि विपणन,झारखंड)रहे हैं, तथा वर्तमान में संप्रति-मुख्य कार्यपालक प्रबंधक (निजी कम्पनी,दलसिंहसराय) हैंl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आपका नेक कार्यों में लगी सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl साहित्यक कार्यक्रमों तथा क्षेत्र के कवि सम्मेलनों में सहभागिता करते हैंl आपकी लेखन विधा-कविता,ग़ज़ल, व्यंग्य एवं वृत्तांत हैl प्रकाशन में आपके नाम ग़ज़ल संग्रह-‘देखता हूँ ख़्वाब’(मुम्बई),’क़ायल आपके होते’ (आगरा)है तो शीघ्र प्रकाश्य- ‘फूलों का शहर होता'(ग़ज़ल संग्रह) है। विभिन्न अखबारों और ऑन लाईन भी आपकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको ‘कवि कोकिल विद्यापति स्मृति सम्मान'(विद्यापति राजकीय महोत्सव,२०१६) सहित ‘राष्ट्र कवि दिनकर साहित्य सम्मान’ (नई दिल्ली), ‘मिथिला गौरव सम्मान‘(२०१७), ‘विद्यापति साहित्य सम्मान‘ और ‘साहित्य सम्मान’ (बिहार)आदि १५ प्राप्त है।लेखनी का उद्देश्य-आसान भाषा में साहित्य सृजन कर अधिकाधिक पाठकों को साहित्य से जोड़ना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेम चन्द,कृष्णा सोबती,अमृता प्रीतम तथा हरिवंश राय बच्चन हैं। आपकी नजर में प्रेरणापुंज- दुष्यंत कुमार हैं। विशेषज्ञता-कम्प्यूटर संचालन है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत की विशालता केवल इसके आकार और जनसंख्या में ही निहित नहीं है,वरन इस कारण यह विशाल है,कि इस देश के सदैव से विशाल हृदयी रहे हैं। हमारे देश ने हर प्रकार के झंझावातों को झेलते हुए सामाजिक सौहाद्र बनाए रखा। यह अभी भी सुरक्षित है। पिछले दशकों में इसमें क्षरण अवश्य हुआ है,किन्तु इस देश की अस्मिता-राष्ट्र की एकता के लिए हिन्दी भाषा ने पहले भी भूमिका निभाई है और आगे भी निभाती रहेगी।”

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