उन्मुक्त गगन में उड़ चली
डॉ.जयभारती चन्द्राकर भारतीगरियाबंद (छत्तीसगढ़) ********************************************************* उड़ चली…उड़ चली…,उन्मुक्त गगन में उड़ चली। बंक पंक्ति ज्यों कमल श्वेत,पुष्प हार बन उड़ चलीसशक्त,स्वयं सिद्धा बन उड़ चली।उन्मुक्त गगन में उड़ चली… स्वयं मुग्धा,अनंत शौर्य,ज्योति बिंदु,बन उड़ चली,जग को अलौकिक आनंद दे उड़ चली।उन्मुक्त गगन में उड़ चली… याचना न स्वीकारना,अभिलाषान न लालसा बन उड़ चली,मोह न अब बिछोह,स्वयं … Read more