प्रेम का रोग छाया
डी.पी. लहरे कबीरधाम (छत्तीसगढ़) **************************************************************************** (रचना शिल्प:बहर-२१२ २१२ २१२ २) आग सी क्यूँ लगी है जहन पर। प्रेम का रोग छाया बदन पर। चाहता हूँ तुझे इस तरह मैं, चाँद तारे हैं जितने गगन पर। बंद पलकें करूं तो दिखे तुम, तुम बसी हो सदा इस नयन पर। जिंदगी की हसीं मीत हो तुम, फूल … Read more