कुल पृष्ठ दर्शन : 454

प्रेम का रोग छाया

डी.पी. लहरे
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
****************************************************************************

(रचना शिल्प:बहर-२१२ २१२ २१२ २)

आग सी क्यूँ लगी है जहन पर।
प्रेम का रोग छाया बदन पर।

चाहता हूँ तुझे इस तरह मैं,
चाँद तारे हैं जितने गगन पर।

बंद पलकें करूं तो दिखे तुम,
तुम बसी हो सदा इस नयन पर।

जिंदगी की हसीं मीत हो तुम,
फूल बनकर महकना चमन पर।

द्वारिका पूजता है तुझे ही,
प्यार रखना सदा इस सजन परll

Leave a Reply