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छत्तीसगढ़ के असली जननायक रहे वीर नारायण सिंह

लक्ष्मीनारायण लहरे ‘साहिल’
सारंगढ़(छत्तीसगढ़)

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छत्तीसगढ़ के इतिहास पर नजर डालें तो अलग-अलग समय में अलग अलग देशभक्त-सपूतों का जन्म हुआ,जो समाज और अपनी जन्मभूमि के लिए जिएl जिनके इतिहास को पढ़ कर-सुन कर बाँहें फूल जाती हैंl उनके कार्यों के प्रति मन-हृदय में श्रद्धा के भाव जाग जाते हैं। छत्तीसगढ़ के वर्तमान जिला बलौदाबाजार के सोनाखान में छत्तीसगढ़ के जननायक शहीद वीर नारायण सिंह का जन्म हुआ,जो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे और अंग्रेजों से लोहा लियाl अपनी जन्मभूमि के लिए आवाज बुलंद करते हुए लड़े,लोगों में चेतना जगाई,जिनकी वीरता का गुणगान करते कोई नहीं थकताl शहीद वीर नारायण सिंह जी की १० दिसम्बर को १६२वीं पुण्यतिथि `शहादत दिवस` के रूप में मनाई गई। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे शहीद वीर नारायण सिंह की `शहादत दिवस` पर सरकारी छुट्टी होनी चाहिए और इस दिन रायपुर के जय स्तंभ चौक को दुल्हन की तरह सजाना चाहिए, वहां उन्हें सलामी देनी चाहिएl इस विषय पर छत्तीसगढ़ सरकार को विचार करना चाहिएl शहीद वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ ही नहीं,भारत के लिए एक जननायक रहे जिन्हें पढ़ना समझना नई पीढ़ी को बल देगाl भारत में जब स्वतंत्रता संग्राम की आवाज बुलंद हो रही थी,अंग्रेजों के दमन से राजा-राजवाड़े में अंग्रेजों के खिलाफ उनके दमन को लेकर लामबंद हो रहे थे तथा भारत में स्वतंत्रता आंदोलन की आग धधक रही थी,तब छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं थाl १८५७ के आंदोलन में स्वतंत्रता की चाह लिए अंग्रेजों के विरोध में सब सशस्त्र क्रांति कर रहे थे,और अपने जीवन का बलिदान भी किया तो इस आंदोलन में वीर नारायण सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। शहीद वीर नारायण सिंह का जन्म १७९५ में सोनाखान के जमींदार रामसाय जी के यहां हुआ था। ३५ वर्ष की उम्र में ही पिता से जमींदारी की जिम्मेवारी मिली। इतिहासकारों की मानें तो १७वीं शताब्दी में सारंगगढ़ जमींदार के वंशजों द्वारा सोनाखान राज्य की स्थापना की गई थी। सोनाखान का प्राचीन नाम `सिंघगढ़` थाl युवराज नारायण सिंह अपने रियासत क्षेत्र में अपने प्रिय घोड़े पर बैठकर अपनी रियासत का हाल-चाल लेने अक्सर घूमा करते थेl सोनाखान में एक शेर आ गया था,जो मनुष्य को मार डालता था,जिसके आतंक से रियासत की प्रजा भयभीत थीl युवराज को जब उस नरभक्षी शेर का पता चला,तब जंगल में पहुंचकर उस शेर को तलवार से ढेर कर दियाl युवराज के शौर्य की पूरी रियासत में चर्चा होने लगीl तब ब्रिटिश अधिकारियों को पता चला तो युवराज को `वीर` की उपाधि दी गईl इस सम्मान के बाद युवराज वीर नारायण सिंह बिंझवार के नाम से प्रसिद्ध हुए। जिस जगह शेर को ढेर किया था,उस जगह को `बाघमारा` के नाम से भी जाना जाता है। वीर नारायण सिंह अपनी निडरता,न्यायप्रियता,परोपकारिता और देशभक्ति के कारण लोगों के बीच जन-नायक बन गएl आप अपनी प्रजा के प्रति अपनी सहृदयता के लिए प्रसिद्ध थेl सन १८५६ में जब भयानक अकाल पड़ा,तब अंग्रेजी हुकूमत ने जनता की मदद ना कर उन पर तरह-तरह से दमनकारी नीतियों का प्रयोग करना शुरू कर दियाl अंग्रेजी हुकूमत के इस दमन से वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी और अपनी प्रजा की रक्षा के लिए हजारों किसानों को साथ लेकर कसडोल के जमाखोर अनाज व्यापारी के गोदामों पर धावा बोलकर सारा अनाज लूट लिया,और दाने-दाने को तरस रही अपनी प्रजा में बँटवा दियाl जमाखोर ने इस घटना की शिकायत उस समय के डिप्टी कमिश्नर इलियट से कर दीl इस घटना को `सोनाखान का विरोध` के नाम से भी जाना जाता है। वीर नारायण सिंह को २४ अक्टूबर को संबलपुर से बंदी बना लिया गया और रायपुर लाया गयाl अंग्रेजी सत्ता के विरोध में विद्रोह की भावना भड़क रही थीl १८५७ में १७ मई को मेरठ में मंगल पांडे ने विरोध कर दिया। अंग्रेजी फौज के हिंदू और मुसलमान सैनिकों में विद्रोह की अग्नि धधक रही थीl रायपुर के सैनिक मौका ढूंढ रहे थेl तब जेल में बंद वीर नारायण सिंह को अपना नेता चुना और सैनिकों ने हर संभव वीर नारायण सिंह की सहायता की। फिर यह जेल से भाग निकलेl वीर नारायण सिंह जेल से भागकर अपनी रियासत सोनाखान पहुंचेl यहाँ की जनता अंग्रेजी सत्ता से मुक्ति पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। वीर नारायण सिंह के नेतृत्व में ५०० सैनिकों की एक सेना बनाई गई और क़ुररूपाठ(आदिवासी राजाओं के देवता) डोंगरी को अपना आसरा बना लिया गया। यह खबर रायपुर के डिप्टी कमिश्नर स्मिथ के पास पहुंची तो डर के मारे उसकी हालत पतली हो गईl सुबह अंग्रेजों की सेना सोनाखान के लिए चल पड़ी और खरौद पहुंचीl २६ नवम्बर को कमिश्नर स्मिथ को वीर नारायण सिंह का एक पत्र मिला,जिसे उसने अपने पास बैठे जमींदार से पढ़ाया और सुनकर गुस्से में आग बबूला हो उठाl
इतिहास पर गौर करें तो सुबह होते ही कमिश्नर स्मिथ की फौज सोनाखान के लिए रवाना हो गईl स्मिथ डरा हुआ थाl उनकी सेना में ८० बेलदार थे,जो भारतवासी थेl जब बेलदारों को पता चला कि सोनाखान में आक्रमण करना है,तब बेलदारों ने मना कर दिया। स्मिथ के दिमाग में कुछ और भी थाl अपनी सेना के साथ जब सोनाखान पहुंचा तो सारा गांव खाली पड़ा था,तो उसने खाली घरों में ही गोलियां चलवा दी और घरों को आग लगवा दी,जिससे सोनाखान जलकर ढेर हो गया। स्मिथ अपने डेरे की ओर वापस जा रहा था,तब एक पहाड़ी के पीछे से वीर नारायण सिंह ने उस पर गोलियां चलाई,पर स्मिथ बच निकलाl बाद में चारों तरफ से वीर नारायण सिंह और उनके सेना की घेराबंदी हो गईl वीरनारायण के सारे सैनिक युद्ध में मारे गए,तथा वीर नारायण सिंह को १ दिसम्बर को बंदी बना लिया गया और रायपुर जेल लाया गयाl वीर नारायण पर देशद्रोह का मुकदमा चला और रायपुर के वर्तमान जयस्तंभ चौक में १० दिसम्बर को फाँसी दे दी गई और बाद में शव को तोप से उड़ा दिया गया।
भारत के एक सच्चे देशभक्त और छत्तीसगढ़ के जननायक की जीवनलीला समाप्त हो गईl शहीद वीर नारायण सिंह की याद में ६० पैसे का डाक टिकट जारी किया गया,वही २००८ में रायपुर शहर में शहीद वीर नारायण सिंह के नाम से अंतरर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण हुआ और उनकी स्मृति में राज्य शासन ने शहीद वीर नारायण सिंह पुरस्कार की स्थापना की हैl

परिचय-लक्ष्मीनारायण लहरे का उपनाम ‘साहिल’ है। पहचान युवा साहित्यकार-पत्रकार की है। आप सह सम्पादक के नाते कई पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े हुए हैं। निवास कोसीर सारंगढ़(जिला रायगढ़- छत्तीसगढ़)में है।

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