कत्लेआम

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली देहरादून( उत्तराखंड) ******************************************************* आज भावनाओं का भी देखो ऐसे कत्लेआम होता है। घर में मारकर बीबी को वो, बाहर खूब जोर से रोता है। ऐसे कत्लेआम… बेटी को भी ना छोड़े ये, ऐसा पिता भी होता है। लगे धब्बे जो दामन पे, सरेआम वो धोता है। ऐसे कत्ले आम… भाई का भाई … Read more

नदियों को बचाना है

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली देहरादून( उत्तराखंड) ******************************************************* आओ मिलकर सोचें सब, नदियों को बचाना है। नदियों के उदगम में जाकर, जब तुम कचरा फैलाते हो। मौज-मस्ती करके सब तुम, जब अपने घर आते हो। एक बात भूल जाते सदा, पुण्य के लिए डुबकी उसी में लगाना है। नदियों को बचाना है….॥ जीव-जंतु जो मर गये, और … Read more

सागर

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली देहरादून( उत्तराखंड) ******************************************************* सब नदियों का मीठा पानी, सागर में ही आता है। इसमें क्या गुण है ऐसा, जो ये खारा ही रह जाता है। मीलों तक फैला है फिर भी, प्यासा ये रह जाता है। इंसानी फ़ितरत भी ऐसी, सागर जैसा बन जाता है। अपने प्रिय की आँखों में, जो आँसू … Read more

बिखरे रंग

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली देहरादून( उत्तराखंड) ******************************************************* इस होली पर हमने देखे सबके कैसे कैसे रंग। कुछ माथे,कुछ चेहरे पे चढ़े और कुछ घूमे वस्त्रों के संग। भर पिचकारी मारें बच्चे जिनमें घोले कई हैं रंग। अबीर गुलाल जो बिखरे हैं वो मुस्काते बच्चों के संग। छाप छोड़ गए घर-आँगन में अबकी जो होली के रंग। … Read more

दुश्मन भी गले मिल जाते हैं

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली देहरादून( उत्तराखंड) ******************************************************* ये भारत की धरती है दोस्तों, जहाँ सब मिल होली मनाते हैं। क्या तेरा-क्या मेरा यहाँ पर, दुश्मन भी गले मिल जाते हैं। इंद्रधनुषी रंगों के यहां तो, सभी ख्वाब दिखलाते हैं। प्यार मुहब्बत मिले जहाँ भी, दुश्मन भी गले मिल जाते हैं। रंगों के त्यौहार में देखो, सभी … Read more

औरत

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली देहरादून( उत्तराखंड) ******************************************************* ‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ स्पर्धा विशेष………………… आसमां से जो उतर आई धरा पर, सूर्य की पहली किरण का तेज हो तुम। बादलों की गोद से जो बून्द सागर में गिरी, सीप से निकला हुआ मोती हो तुम॥ और जब बहारें झूम के आईं चमन में, गुल भी हो काँटा भी … Read more