पिता तुम याद आते हो

विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)************************************ ‘पिता का प्रेम, पसीना और हम’ स्पर्धा विशेष….. तुम्हारे प्यार से सिंचित,वो आँगन याद आता हैपिता तुम याद आते हो,तो बचपन याद आता है। मैं नन्हीं एक बच्ची थी,तो खुश सारा जमाना थान चिन्ता थी न पीड़ा थी,खिलौनों का खजाना था।रूठ कर जो मैं करती थी,वो अनशन याद आता है। वो बरसाती नदी-नाले,जो … Read more

आँसू बह कर क्या कर लेंगे!

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आँखों में जो रहे न सुख से, आँसू बह कर क्या कर लेंगे। आवारा से निकल दृगों से, मुख पर आकर मुरझाएंगेl जब न मिलेगा कहीं ठिकाना, किए कृत्य पर पछताएंगेl मन की करें शिकायत मन से, तन से कह कर क्या कर लेंगेll किसके दृग इतने विशाल हैं, जो अनचाहे … Read more

आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* ‘आत्मजा’ खंडकाव्य अध्याय-१९.. विकृत रीतियों को दलने में, प्रथम कदम यह होगा मेरा आँख खुली,मैं जागा,वरना, होता अपराधी ही तेरा। यही सोचते पहुँच गये वे, सीधे अंशुमान के घर को खुला द्वार आया जो सन्मुख, देखा कभी न ऐसे नर को। कहो अतिथि आये हो कैसे, किससे मिलने की है चाहत … Read more

आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* ‘आत्मजा’ खंडकाव्य से अध्याय-१८………. हुआ द्रवित मन,आँसू छलके, भाव विह्वल पितु लगे सोचने बेटी को भी समझ न पाये, लगे स्वयं को सहज कोसने। शिक्षा देकर छीनूँ खुशियाँ, यह न कभी कर्तव्य पिता का यदि बेटी का हो न स्वयं पर, तो होगा अधिकार चिता का। सजातीय वर पाने को क्यों, … Read more

आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा खंडकाव्य अध्याय-१७………….. देख पिता को इतना चिन्तित, पुन: प्रभाती ने मुँह खोला क्यों हो बैठे मौन पिताश्री, क्या मैंने कुछ अनुचित बोला। तूने नहीं किया कुछ अनुचित, मैं ही भटक गया हूँ पथ से उतर पड़ा था जीवन रण में, अनदेखे यथार्थ के रथ से। सपनों की दुनिया में खोया, … Read more

एक है संसार

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* विश्व बाल दिवस स्पर्धा विशेष……….. आओ मिल कर गायें हम-तुम, एक है संसार उठे हमारे मिले स्वरों की, नभ में भी गुंजार। सूर्य चमकता सबके घर में, पाते सभी प्रकाश मेघ बरसते जब धरती पर, बुझती सबकी प्यासl दिये विधाता ने ही हमको, सब समान अधिकार। यहाँ न कोई ऊंचा-नीचा, यहाँ … Read more

आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा खंडकाव्य से अध्याय-१५  बार-बार मस्तक पर दस्तक, दे-दे जाती उनको पत्नी द्वार खोल कर कभी झाँकते, फिर कर लेते बंद सिटकिनी। कभी सत्यता दिखती उनको, प्रिय पत्नी के सुदृढ़ कथन में कभी प्रभाती की सुयोग्यता, प्रगति सुनिश्चित करती मन में। दोनों सत्य खींचते क्रमश:, मची हृदय में रहती हलचल मन … Read more

आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा खंडकाव्य से अध्याय-१४……………… इसीलिए तो कहती हूँ माँ, मैं भी अपना पति चुन लूँगी लघु जीवन के ताने-बाने, अपने हाथों से बुन लूँगी। मैं तेरी चिन्ता का कारण, नहीं अधिक दिन बनी रहूँगी देकर जन्म पराया कहती, यही परापन न सहूँगी। माता-पिता नहीं जब अपने, तो कोई क्यों होगा अपना … Read more

था वो काठियावाड़ी

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आओ सुनाऊं बच्चों, गाथा तुम्हें न्यारी, जिसने दिया स्वराज,था वो काठियावाड़ी । कर में थी एक लाठी,तन पर थी लंगोटी, थी एक भुजा लम्बी कुछ एक थी छोटी… था भाल बहुत ऊंचा सर पर न बाल थे, बच्चों बड़े अदभुत उन बापू के हाल थे। देखी न कभी ऐसी प्रतिमा यहां … Read more

आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा खंडकाव्य अध्याय-१२……… दिन होते ही सेतु बनाती, जीवन में आगे जाने के रात सुखद सपनों में खोती, अंशुमान को अपनाने के। अलग-अलग थे दोनों ही पथ, दिन के और रात के अपने दिन में थे कुछ कार्य प्रयोगिक, और रात में ऊँचे सपने। कैसे जोड़े इन दोनों को, बहुत सोचती … Read more