आत्मजा
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा खंडकाव्य से अध्याय-१५ बार-बार मस्तक पर दस्तक, दे-दे जाती उनको पत्नी द्वार खोल कर कभी झाँकते, फिर कर लेते बंद सिटकिनी। कभी सत्यता दिखती उनको,…
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November 16, 2019