आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा खंडकाव्य से अध्याय-१५  बार-बार मस्तक पर दस्तक, दे-दे जाती उनको पत्नी द्वार खोल कर कभी झाँकते, फिर कर लेते बंद सिटकिनी। कभी सत्यता दिखती उनको, प्रिय पत्नी के सुदृढ़ कथन में कभी प्रभाती की सुयोग्यता, प्रगति सुनिश्चित करती मन में। दोनों सत्य खींचते क्रमश:, मची हृदय में रहती हलचल मन … Read more

था वो काठियावाड़ी

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आओ सुनाऊं बच्चों, गाथा तुम्हें न्यारी, जिसने दिया स्वराज,था वो काठियावाड़ी । कर में थी एक लाठी,तन पर थी लंगोटी, थी एक भुजा लम्बी कुछ एक थी छोटी… था भाल बहुत ऊंचा सर पर न बाल थे, बच्चों बड़े अदभुत उन बापू के हाल थे। देखी न कभी ऐसी प्रतिमा यहां … Read more

आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* ‘आत्मजा’ खंडकाव्य अध्याय -११ हुई प्रभाती सफल,सुना ज्यों, अंशु खुशी से लगा उछलने ऐसी जीवन संगिनि पाये, मन भीतर से लगा मचलने। भरने लगा उड़ानें ऊँची, ज्यों उसने हो जीती बाजी लगा उसे ज्यों हुई प्रभाती, उसके सँग विवाह को राजी। करने लगा प्रतीक्षा ऐसी, किस पल पहल करे वह आकर … Read more