आत्मजा
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा खंडकाव्य से अध्याय-१५ बार-बार मस्तक पर दस्तक, दे-दे जाती उनको पत्नी द्वार खोल कर कभी झाँकते, फिर कर लेते बंद सिटकिनी। कभी सत्यता दिखती उनको, प्रिय पत्नी के सुदृढ़ कथन में कभी प्रभाती की सुयोग्यता, प्रगति सुनिश्चित करती मन में। दोनों सत्य खींचते क्रमश:, मची हृदय में रहती हलचल मन … Read more