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आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा 
इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)
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‘आत्मजा’ खंडकाव्य अध्याय -११
हुई प्रभाती सफल,सुना ज्यों,
अंशु खुशी से लगा उछलने
ऐसी जीवन संगिनि पाये,
मन भीतर से लगा मचलने।

भरने लगा उड़ानें ऊँची,
ज्यों उसने हो जीती बाजी
लगा उसे ज्यों हुई प्रभाती,
उसके सँग विवाह को राजी।

करने लगा प्रतीक्षा ऐसी,
किस पल पहल करे वह आकर
धन्य भाग्य हो जाये वह भी,
आइ.ए.एस. दुलहिन को पाकर।

वह केवल उत्तीर्ण हुआ था,
अव्वल थी आ गई प्रभाती
किन्तु विशाल हृदय में उसके,
स्तुति मात्र प्रिया की आती।

अगर उसे मिल जाये प्रभाती,
कितना सुन्दर होगा जोड़ा
प्रभु से यही प्रार्थना करता,
नहीं मार्ग में आवे रोड़ा।

इधर प्रभाती सोच रही थी,
कैसे बदले जिला प्रशासन
कैसे करे विकास कार्य वह,
कैसे करे ग्राम परिवर्तन।

एक-एक को कर दे शिक्षित,
सारे रीति रिवाज बदल दे
रहे अंध विश्वास न जग में,
ऐसी एक चाल वह चल दे।

नारी शिक्षा में जो आतीं,
दूर सभी कर दे बाधाएँ
करना है अनिवार्य पढ़ाई,
देना है समुचित सुविधाएँ।

नारी अत्याचार न झेले,
बन कर रहे न केवल अबला
वही बदल सकती है जग को,
मन से हो जाये यदि सबला।

उसे मिटाना हैं कुरीतियाँ,
जीवित रहे समुज्जवल संस्कृति,
नैतिकता चरित्र से झलके,
हो समाज की पावन आकृति।

देश हेतु सब मर मिट जावें,
देश हेतु लें जन्म धरा पर
कण-कण में प्रकाश जो भर दे,
बच्चा-बच्चा बने दिवाकर।

जहाँ वृद्धजन का हो आदर,
प्यार मिले बच्चे – बच्चे को
नारी की हो पूर्ण प्रतिष्ठा,
न्याय मिले केवल सच्चे को।

ऐसा हो यदि भारत अपना,
तो मैं स्वयं धन्य हो जाऊँ
परम पिता दे शक्ति मुझे वह,
मन में लिखे कार्य कर पाऊँ।

परिचय-विजयलक्ष्मी खरे की जन्म तारीख २५ अगस्त १९४६ है।आपका नाता मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से है। वर्तमान में निवास इलाहाबाद स्थित चकिया में है। एम.ए.(हिन्दी,अंग्रेजी,पुरातत्व) सहित बी.एड.भी आपने किया है। आप शिक्षा विभाग में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हैं। समाज सेवा के निमित्त परिवार एवं बाल कल्याण परियोजना (अजयगढ) में अध्यक्ष पद पर कार्यरत तथा जनपद पंचायत के समाज कल्याण विभाग की सक्रिय सदस्य रही हैं। उपनाम विभा है। लेखन में कविता, गीत, गजल, कहानी, लेख, उपन्यास,परिचर्चाएं एवं सभी प्रकार का सामयिक लेखन करती हैं।आपकी प्रकाशित पुस्तकों में-विजय गीतिका,बूंद-बूंद मन अंखिया पानी-पानी (बहुचर्चित आध्यात्मिक पदों की)और जग में मेरे होने पर(कविता संग्रह)है। ऐसे ही अप्रकाशित में-विहग स्वन,चिंतन,तरंग तथा सीता के मूक प्रश्न सहित करीब १६ हैं। बात सम्मान की करें तो १९९१ में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘साहित्य श्री’ सम्मान,१९९२ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा सम्मान,साहित्य सुरभि सम्मान,१९८४ में सारस्वत सम्मान सहित २००३ में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल की जन्मतिथि पर सम्मान पत्र,२००४ में सारस्वत सम्मान और २०१२ में साहित्य सौरभ मानद उपाधि आदि शामिल हैं। इसी प्रकार पुरस्कार में काव्यकृति ‘जग में मेरे होने पर’ प्रथम पुरस्कार,भारत एक्सीलेंस अवार्ड एवं निबन्ध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त है। श्रीमती खरे लेखन क्षेत्र में कई संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। देश के विभिन्न नगरों-महानगरों में कवि सम्मेलन एवं मुशायरों में भी काव्य पाठ करती हैं। विशेष में बारह वर्ष की अवस्था में रूसी भाई-बहनों के नाम दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कविता में इक पत्र लिखा था,जो मास्को से प्रकाशित अखबार में रूसी भाषा में अनुवादित कर प्रकाशित की गई थी। इसके प्रति उत्तर में दस हजार रूसी भाई-बहनों के पत्र, चित्र,उपहार और पुस्तकें प्राप्त हुई। विशेष उपलब्धि में आपके खाते में आध्यत्मिक पुस्तक ‘अंखिया पानी-पानी’ पर शोध कार्य होना है। ऐसे ही छात्रा नलिनी शर्मा ने डॉ. पद्मा सिंह के निर्देशन में विजयलक्ष्मी ‘विभा’ की इस पुस्तक के ‘प्रेम और दर्शन’ विषय पर एम.फिल किया है। आपने कुछ किताबों में सम्पादन का सहयोग भी किया है। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी रचनाओं का प्रसारण हो चुका है।

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