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वो शहर जो कभी मेरा था

ऋचा सिन्हा
नवी मुंबई(महाराष्ट्र)
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वो शहर जो कभी मेरा था,
मेरा अपना था बहुत अपना था
उसके अहाते में बसता है मेरा दिल,
हर कोना गवाह है मेरी मुहब्बत का।
हर दीवार पर मेरा अक्स है,
उसकी ज़मीन पर मेरे पाँव के निशान
उसकी छत पर मेरा मुक़ाम है,
मेरी ख़ुशबू विद्यमान है।
उसकी हवाओं में,
जहाँ हर साँस जी है मैंने
बचपन गुज़ारा है अपने कर्म से,
एक समय था वहाँ बादशाहत थी मेरी,
मेरा ना होकर भी वो मेरा अपना था।
अपना बहुत अपना,
उसकी मिट्टी में मेरा पसीना है
और गलियों में मेरा अनुभव,
बहुत-सी खट्टी मीठी यादें जुड़ी हैं
जो कभी रुलाती हैं तो कभी
मुस्कान बन छिटक जाती है लबों पर।
एक समय था वो आशियाना था मेरा,
जहाँ मेरा हमदम बसता था
मेरी कुछ शैतानियों का गवाह,
वहाँ मिली थी मुझे एक परी
जिसकी यादें आज भी गुदगुदाती हैं मुझे,
अब वहाँ सन्नाटा है
मेरा शहर मेरा ना रहा वो बदल गया है।
आज मैं एक मेहमान बन गया हूँ,
अपनी ही रियासत का
जो कभी मेरा था,
अब किसी और का है
पर मेरा हमदम आज भी मेरा है।
और मेरी परी आज भी मेरी है,
अपनी बहुत अपनी॥

परिचय – ऋचा सिन्हा का जन्म १३ अगस्त को उत्तर प्रदेश के कैसर गंज (जिला बहराइच) में हुआ है। आपका बसेरा वर्तमान में नवी मुम्बई के सानपाड़ा में है। बचपन से ही हिंदी और अंग्रेजी साहित्य में रुचि रखने वाली ऋचा सिन्हा ने स्नातकोत्तर और बी.एड. किया है। घर में बचपन से ही साहित्यिक वातावरण पाने वाली ऋचा सिन्हा को लिखने,पढ़ने सहित गाने,नाचने का भी शौक है। आप सामाजिक जनसंचार माध्यमों पर भी सक्रिय हैं। मुम्बई (महाराष्ट्र)स्थित विद्यालय में अंग्रेज़ी की अध्यापिका होकर भी हिंदी इनके दिल में बसती है,उसी में लिखती हैं। इनकी रचनाएँ विभिन्न पत्रिकाओं में छप चुकीं हैं,तो साझा संग्रह में भी अवसर मिला है।

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