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हरिवंश नारायण के लेखन में सहानुभूति के साथ प्रतिरोध का बुलंद स्वर

पटना (बिहार)।

हरिवंश नारायण हिंदी साहित्य के एक सशक्त उपन्यासकार एवं कथाकार हैं। उनकी कहानियों में प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन के रचना कौशल और शिल्प की सुगंध आती है। उनके लेखन में संस्कृति का दर्द, दबे-कुचले समाज के लिए सहानुभूति एवं न्याय भाव के साथ प्रतिरोध का बुलंद स्वर मुखरित है।
राजधानी के प्रमुख रचनाकारों एवं शिक्षाशास्त्री विद्वानों की ओर से यह विचार व्यक्त किए गए। मौका रहा प्रसिद्ध साहित्यकार हरिवंश नारायण की दसवीं पुण्य स्मृति में व्याख्यान समारोह का। यह आयोजन साहित्य कला संसद (बिहार) की ओर से महात्मा गांधी नगर स्थित रचनापीठ सभागार में किया गया।
संगोष्ठी में मुख्य वक्ता वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के प्रो. अखिलेश कुमार ने लेखक की ‘मन का माझी’ कहानी पर प्रकाश डाला, जो प्रेम त्रिकोण पर आधारित है।
अध्यक्षता करते हुए सम्पादक डॉ. शिवनारायण ने कहा कि प्रसिद्ध साहित्यकार हरिवंश नारायण आम आदमी के संत्रास के रचनाकार हैं। उनकी चर्चित कहानी ‘अंतिम आदमी’ की कथा संवेदना में दबे-पिछड़े एवं वंचित समुदाय का जीवन संघर्ष है।
डॉ. अजय कुमार (पूर्व प्रशासनिक अधिकारी) ने पुण्यतिथि पर नमन करते हुए उनकी रचना ‘मिट्टी के गौरव’ को याद किया।
डॉ. मनोज गुप्ता व शिक्षाविद डॉ. ध्रुव कुमार ने भी अपनी बात प्रस्तुत की।
आरंभ में साहित्य समागम में अतिथियों का स्वागत संसद के अध्यक्ष डॉ. पंकज प्रियम ने किया।
इस अवसर पर सिद्धेश्वर, डॉ. गौरी गुप्ता, डॉ. रूबी भूषण,
मधुरेश नारायण आदि ने अपनी रचनाओं से कथाकार के प्रति पुष्पांजलि अर्पित की।