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अभी संकट गहरा है

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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वो यहाँ-वहाँ ना जाने कहाँ-कहाँ,
मौत ही मौत का केवल पहरा है…
दिखता नहीं अवसर सुनहरा है,
चारों ओर अभी संकट गहरा है।

विकास ना जाने कहाँ ठहरा है,
काम-काज में लगा ग्रहण बड़ा है…
यमदूत आ अब बाहर खड़ा है,
चारों ओर अभी संकट गहरा है।

ना मित्र ही है ना है कोई भी शत्रु,
ना किसी को है कोई अभिमान…
सर्वत्र सभी स्वगृह में ही पड़ा है,
चारों ओर अभी संकट गहरा है।

अपनों से दूर होकर जो मजबूर,
एकांत ही उस सेज पर पड़ा है…
मौत से दो हाथ का प्रण धरा है,
चारों ओर अभी संकट गहरा है।

मौत से लड़ते परवानों के संग,
भूख से लड़ते इंसानों के संग…
सहायक खड़ा,ईश्वर हमारा है,
चारों ओर अभी संकट गहरा है।

करता ‘राजू’ सबसे एक इशारा है,
नियमों में ना माँगे कोई भी छूट…।
अलग रहना ही जीत का सहारा है,
चारों ओर अभी संकट गहरा है…
चारों ओर अभी संकट गहरा है॥

परिचय–साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैl जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैl भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैl साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैl आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैl सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंl लेखन विधा-कविता एवं लेख हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैl पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंl विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।

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