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फूल वो मुरझा नहीं सकता

प्रिया सिंह
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)

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(रचना शिल्प: बहर-१२२२ १२२२ १२२२ १२२२)


मज़ा परदेश में क्या है उसे समझा नहीं सकता,
सुकूँ जो घर में मिलता है कहीं वो पा नहीं सकता।

सुनो ऐ बाग़बाँ गुलशन पे अपने तुम नजर रखना,
ये मत समझो खिला जो फूल वो मुरझा नहीं सकता।

बुढ़ापे की थकन कर लो जवानी में ज़रा महसूस,
जो लम्हा बीत जाता है वो वापस आ नहीं सकता।

मेरे कदमों में गिर कर आज मुझ से कह रहे थे वो,
मेरे दिल में फक़त है प्यार जो दिखला नहीं सकता।

खता क्या हो गई मुझसे जो लोगों से वो कहता है,
मैं उसकी बात को दिल में कभी दफना नहीं सकता।

वो बुज़दिल हैं लड़ाई से जो पहले हार जाते हैं,
अगर है अज्म दिल में फिर कोई सरका नहीं सकता।

मुकद्दर में लिखा था जो वो ‘प्रिया’ हमने पाया है,
है गुत्थी ज़ुल्फों-सी उलझी कोई सुलझा नहीं सकता॥

परिचय-प्रिया सिंह का बसेरा उत्तरप्रदेश के लखनऊ में है। २ जून १९९६ को लखनऊ में जन्मी एवं वर्तमान-स्थाई पता भी यही है। हिंदी भाषा जानने वाली प्रिया सिंह ने लखनऊ से ही कला में स्नातक किया है। इनका कार्यक्षेत्र-नौकरी(निजी)है। लेखन विधा-ग़ज़ल तथ कविता है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जन-जन को जागरूक करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा को मानने वाली प्रिया सिंह देश के लिए हिंदी भाषा को आवश्यक मानती हैं।

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