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स्त्री…एक किताब

अमृता सिंह
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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स्त्री…
होती है जैसे…एक किताब…
देखते तो हैं सब जिसे..,
अपनी-अपनी अपेक्षाओं के
हिसाब से…।

घूरता है कोई…उत्सुक-सा,
समझ के रंगीन चित्रकथा
उसे,सोचता है कोई…
उपन्यास सस्ता और घटिया-सा।

कुछ होते हैं जो,
पलटते हैं पन्ने इसके
गुज़ारने को अपना वक़्त खाली,
तो सजा देते हैं कुछ…
घर के पुस्तकालय में इसे,
किसी नायाब लेखक की कृति
समझ कर…।

हैं कुछ ऐसे भी,
रद्दी समझते हैं जो इसे
ओट देते हैं
घर के किसी कोने में।

तो कुछ होकर उदार,
मंदिर में हैं पूजते इसे
समझ कर किसी अलमारी में रखी
गीता-कुरान-बाइबल जैसे,
ग्रन्थों की तरह।

स्त्री…है एक किताब ऐसी,
जिसे पृष्ठ दर पृष्ठ कोई पढ़ता नहीं
समझता नहीं…
देखता है जिसे सिर्फ,
आवरण से अंतिम पृष्ठ तक
टटोलता है,निहारता है सिर्फ…।

अतः रह वो जाती है,
अनबांची-सी…
अभिशप्त…अनअभिवव्यक्त-सी…।

सिमटी-सी रह जाती है वो…
विस्तृत होकर भी।
अनछुआ मन लिए,
सदा ही…
स्त्री॥

परिचय-अमृता सिंह के अवतरण की तारीख २२ मार्च एवं जन्म स्थान-इंदौर (मध्यप्रदेश) है। शिक्षा-बी.कॉम. सहित अंग्रेजी में स्नात्तकोत्तर,बी.एड. किया है। इनकी रुचि-सामाजिक कार्य,पर्यटन और कार्यक्रम प्रबन्धन में है। वर्तमान में आपका निवास इंदौर में ही है। संप्रति से आप इंदौर में निजी विद्यालय में शिक्षक हैं।

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