अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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शहादत न सही,कोरोना योद्धाओं की मौत जिन्हें देश ने ‘कोरोना योद्धा’ कहा,जिनके सम्मान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ताली-थाली बजाने का आव्हान किया, जिन्होंने कोविड-१९ महामारी से लड़ते हुए जान लगा दी,और उसी क्रूर कोरोना का शिकार बने चिकित्सकों की शहादत को लेकर मोदी सरकार और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बीच जिस तरह ठनी है,वह निहायत दुर्भाग्यपूर्ण और सरकारी तंत्र की असंवेदनशीलता का परिचायक है। हाल में सरकार ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि मार्च २०२० से लेकर अब तक देश में कोरोना के कारण कुल १६२ चिकित्सकों को जान गंवानी पड़ी। एसोसिएशन ने इन सरकारी आँकड़ों पर गहरी नाराजी जताते हुए दावा किया कि कोरोना काल में ४ फरवरी २०२१ तक देश भर में कुल ७३४ चिकित्सकों ने अपनी जान गंवाईं। एसो. ने कहा कि कोरोना संक्रमण के कारण मरने वाले चिकित्सकों और मेडिकल स्टाफ की संख्या उससे कहीं अधिक है,जो सरकार ने बताई है। यानी कोरोना से चिकित्सकों की मौतों को लेकर सरकार और एसो. के आँकड़ों के बीच का यह फर्क लगभग चार गुने का है। एसो. ने सरकार के आँकड़ों पर सवाल उठाते हुए गहन जांच के लिए उच्चस्तरीय समिति गठित करने तथा कोरोना से मृत सभी चिकित्सकों को सम्मानित करने की अपील की है। एसो. के अनुसार जान गंवाने वाले चिकित्सकों में ४३१ सामान्य चिकित्सक थे,और चिकित्सकों में से २५ की उम्र तो ३५ वर्ष से भी कम थी। पत्र में कहा गया है कि चिकित्सक ऐसे खतरनाक माहौल में भी राष्ट्र की सेवा करने के लिए चिकित्सा क्षेत्र को चुनते हैं,लेकिन भारत सरकार इस तथ्य को स्वीकार करने और उन्हें उचित महत्व और मान्यता देने में विफल रही। एसो. की चिट्ठी इसलिए महत्वपूर्ण है,क्योंकि यह सरकारी तंत्र की संवेदनहीन और कामचलाऊ वृत्ति पर चोट करती है। जिन चिकित्सकों से कोरोना जैसी भयंकर जानलेवा बीमारी से जी-जान लगाकर लड़ने की अपेक्षा की गई और लगभग सभी ने अपना कर्तव्य जान की बाजी लगाकर निभाया,उन चिकित्सकों के सही आँकड़े भी सरकार के पास न होना ही कई सवाल खड़े करता है।
जब कोरोना का प्रकोप चरम पर था तो हमें ये सभी चिकित्सक और मेडिकल स्टाफ देवदूत की तरह नजर आ रहा था,लेकिन सरकारी आँकड़ों में उनकी जगह शायद वही थी,जो अन्य मामलों में सांख्यिकी तैयार करते वक्त होती है।
एसो. ने इस बात पर भी क्षोभ व्यक्त किया कि ऐसे असमय जानें गंवाने वाले चिकित्सकों के साथ सरकार ने वास्तव में क्या सलूक किया। उन्हें कोरोना शहीद का दर्जा देना तो दूर,कोरोना काल में प्राण त्यागने वाले कई चिकित्सकों को ठीक से मुआवजा भी अब तक नहीं मिल पाया है। उनके परिवारों पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा सो अलग।
यह निश्चय ही जांच का विषय है कि,कोरोना से लड़ते हुए कितने चिकित्सकों को असमय अपनी जान गंवानी पड़ी। तकरीबन ऐसी हर मौत मीडिया की सुर्खी भी बनी। इसलिए वह कोई गोपनीय बात नहीं है। हमें यह भी पता है कि कोरोना से युद्ध के दौरान कई चिकित्सक अपने घरों को नहीं गए, क्योंकि परिजनों को भी संक्रमण का खतरा था। ऐसे कई उदाहरण हैं,जिन्होंने चिकित्सा व्यवसाय की उच्च परम्पराओं को कायम रखते हुए अपनी जान तक की परवाह नहीं की,लेकिन उसी सरकार के पास अपने इन कोरोना वीरों का सही आँकड़ा भी न होना यकीनन क्षुब्ध करने वाला है।
सवाल यह भी है कि कोरोना से युद्ध करने वाले चिकित्सकों की मौतों के सही आँकड़े किसके माने जाएं ? सरकार के या फिर एसो. के ? एसो. शहीद हुए चिकित्सकों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर बता रही होगी,ऐसा नहीं लगता। तो क्या सरकार अब भी कोरोना से मृत चिकित्सकों और पैरा मेडिकल स्टाफ के सही आँकड़े नहीं बताना चाहती,या फिर उसके पास पूरे और प्रामाणिक आँकड़े हैं ही नहीं ? जो आंकड़े सामने आए,उनकी पुष्टि करने की जहमत भी नहीं उठाई गई?
यहां सवाल सिर्फ प्राण त्यागने वाले चिकित्सकों की संख्या की प्रामाणिकता का ही नहीं है,उससे भी बड़ा मुद्दा यह है कि,आड़े वक्त पर जिन चिकित्सकों को सरकारें और लोग सिर- आँखों पर बिठा रहे थे, कोरोना से मरने के बाद उनमें से कई के परिजनों को उचित मुआवजा और वो भी समय पर नहीं मिला है। इसे क्या कहा जाए ?
सरकार की तरफ से इस पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है,लेकिन उसे एसो. की मांग पर पूरी संवेदनशीलता के साथ विचार करना चाहिए,क्योंकि कोरोना काल समूचे मानव इतिहास का ऐसा कठिन और अप्रिय समय रहा है,जिसमें हमने इंसानियत और हैवानियत दोनों की पराकाष्ठा को देखा और भुगता है। कोरोना केवल एक महामारी भर नहीं है,उसने मनुष्य की सामाजिकता और आपसी रिश्तों को भी इतनी बुरी तरह से प्रभावित किया है,पुरानी स्थिति लौटने में काफी समय लगेगा और वह पहले जैसा होगा,यह कहना मुश्किल है। यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि जब इंसानियत की अग्नि परीक्षा थी,तब चिकित्सक समुदाय ने उसे विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण किया। अपनी सुरक्षा और स्वार्थों से आगे देश और समाज को रखा। लिहाजा,एसो. का रोष जायज है। अगर सरकार यह दलील देती है कि अपुष्ट आँकड़ों को अधिकृत जवाब में शामिल नहीं किया गया है तो यह भी खुद को धोखे में रखना है। होना तो यह चाहिए था कि संसद में जवाब देने के पहले ही सरकार अपने आँकड़े जांच लेती और फिर देश को बताती,लेकिन ऐसा करने की चिंता भी किसको है ?