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असफलता से सफलता का मार्ग प्रशस्त कीजिए

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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असफलता जीवन की एक वास्तविकता है,जिसका सामना सभी मनुष्यों को अपने जीवन में कभी न कभी,किसी न किसी रूप में करना ही पड़ता है। इससे कोई भाग नहीं सकता।
अलबर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि,-‘यदि कोई व्यक्ति कभी असफल नहीं हुआ,इसका मतलब उसने अपने जीवन में कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की।’
अगर आप असफल नहीं होते हैं,तो इसका मतलब आप अपने जीवन में जोखिम लेने से डर रहे हैं। यह आपके जीवन का सबसे बड़ा ख़तरा है, कि आप कोई ख़तरा नहीं ले रहे हैं। बिना जोखिम लिए,कोई भी व्यक्ति कभी ऊपर नहीं उठा है। जोखिम तो आपको लेना ही पड़ेगा। आगे बढ़ें और चुनौतियों को स्वीकार करें। यदि आप कुछ बातों पर गहराई से विचार करें तो आसानी से अपनी असफलता को सफलता में बदल सकते हैं-
सबसे ज़रूरी है कि अपनी असफलताओ से सीख लें। बात ये नहीं है,कि आप असफल हुए। बात तो इसमें है,कि आपने अपनी असफलता से क्या सीखा। थॉमस अल्वा एडिशन बचपन से हर प्रयोग में असफल हो रहे थे। ९९९९ प्रयोग के बाद उन्होंने इलेक्ट्रिक बल्ब बनाया। वो हर प्रयोग के असफल होने के बाद ये नहीं सोचते थे कि,मैं असफल हो गया। बल्कि सोचते थे कि आज इस असफलता से मैंने क्या सीखा। उन्होंने बात-चीत के दौरान एक पत्रकार से कहा कि,-‘मैं ९९९९ तरीके सीख गया हूँ, जिनसे बल्ब नहीं बनता।’
असफलता कोई समस्या नहीं है,पर अपनी असफलताओं से सीख न लेना ये बहुत बड़ी समस्या है। किसी ने सच ही कहा है कि,-‘समस्या समस्या में नहीं है,बल्कि समस्या को समस्या समझना एक बहुत बड़ी समस्या है।’ कभी भी अपनी असफलताओं के पीछे के कारण पर पर्दा न डालें। हम अक्सर अपनी असफलताओं को स्वीकार करने से डरते हैं और अपने-आपको ही बहाने बनाकर समझाने लगते हैं कि,मेरी असफलता मेरे कारण नहीं,बल्कि दूसरों के कारण है। लोगों के पास ये बताने के बहुत से कारण हैं कि मैं असफल क्यों हुआ। कुछ कहते हैं,कि मेरे पास पैसा नहीं था,कुछ कहते है कि मेरे पास ताक़त नहीं थी,कुछ कहते हैं कि मेरे पास अवसर नहीं था। कुछ कहते हैं कि मुझे मौका ही नहीं मिला। ठीक है भले ही आपके पास साधन नहीं है,पर अगर आपके पास साधन जुटाने की क्षमता है तो आपको कोई नहीं रोक सकता। अपनी असफलताओं के बहाने मत ढूंढें,क्योंकि ये कुछ समय के लिए तो आपको तसल्ली दे सकते हैं,पर आपको आपकी सफलता से कई कदम दूर भी कर सकते हैं। जिस क्षण आप अपनी असफलता को दिल से गले लगाते हैं,और अपने व्यक्तिगत विकास के लिए इसके महत्व को समझते हैं,उसी क्षण आप सफलता की ओर पहली सीढ़ी पर कदम रखते हैं।
आप सदा सावधान रहें कि,आप अपने-
आपसे कैसे बात करते हैं,क्योंकि आप सुन रहे हैं। अपने-आपसे कभी ये मत पूछें,कि मैं असफल क्यों हो जाता हूँ,बल्कि ये पूछें कि मैंने अपनी कौन-सी ताक़त का अब तक इस्तेमाल नहीं किया। अगर आप अपना पूरा ध्यानकेन्द्रण कठिनाइयों पर रखेंगे तो सफल होने की सारी संभावनाएं ख़त्म होती जाएँगी। दोस्तों,सफलता न मिलने का सबसे बड़ा कारण है कि आपका अपने किसी भी काम में असफल होने का डर होना। अगर आपने एक बार ये मान लिया किया कि आप ये नहीं कर सकते तो आप अपने पूरे मन से प्रयत्न नहीं कर पाते और बार-बार असफल होते हैं और फिर यही डर आपकी सोच पर हावी हो जाता है।
कैंसर जैसी बीमारी तो एक बार ठीक भी हो सकती है,पर आपकी सोच को कोई भी बाहरी व्यक्ति नहीं ठीक कर सकता। एक बात हमेशा याद रखिए कि,असफल होने से आप और भी ज्यादा मजबूत बनते हैं और आपको आपका लक्ष्य और भी ज्यादा साफ़ नज़र आता है।
दोस्तों,हक़ीक़त यह है कि अगर आपको सफलता पानी है तो आपको अपना कोई एक लक्ष्य निर्धारित करना होगा। अपने लक्ष्य पर जी-जान लगाकर मेहनत करो। बहुत सारे काम एकसाथ करने की जरूरत नहीं है। वो करो जो सही है,वो नहीं जो आसान है। अक्सर लोग अपनी तुलना दूसरों से करते हैं,वो दूसरों की सफलताओं को देखकर सोचते हैं कि क्या मैं इन जैसा सफल नहीं हो सकता ? पर शायद वो ये नहीं जानते या नहीं जानना चाहते कि,एक सफल व्यक्ति ने भी ना जाने अपने जीवन में कितनी असफलताओं का सामना किया होगा। भारत के पूर्व राष्ट्रपति और विश्व के महान वैज्ञानिकों में से एक डॉ. कलाम ने कहा था कि,-‘अगर आपको अपने जीवन में तेज़ी से सफलता को हासिल करना है तो सफलता की कहानियाँ मत पढ़िए,उससे आपको सिर्फ प्रेरणा ही मिलेगी,अगर पढ़ना है तो असफता की कहानियां पढ़िए,क्योंकि उससे आपको आपके अन्दर की कमियों के बारे में पता चलेगा और आप ज्यादा अच्छे तरीके से अपनी कमियों को सुधार सकेंगे।’
याद रखें कि जितनी जल्दी हम अपनी असफलताओं को झटकना बंद कर देंगे,और उनसे सीखना शुरू कर देंगे,उतनी ही आसानी से हम सफलता की सीढ़ी चढ़ते जाएंगे।

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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