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सृष्टि की जादूगरी

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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यह सुबह,पंछियों की चहचहाहट,
कुछ बोलती गाती यह कोयल
चहकती,फुदकती यह गोरैया,
कोयल इन दिनों,कुछ ज़्यादा ही
कुंहुकती है।
कभी लगता है उसकी,
कुहू-कुहू से चीख-चुभन
मचाती है।
दिनभर यह रंग-बिरंगी,
छोटी-सी चिड़िया जाने किससे
बतियाती है।
कभी कबूतरी की गुटर-गूं,
मन भटकाती है।
आम और पीपल के इस पेड़ पर,
जाने कितने ही पंछियों ने
अपने आशियाने बना लिए हैं।
इन दिनों,यह सब,
दिनभर जाने किसको
अपने सारे किस्से,
जोर-जोर से बोलकर
सुनाते हैं।
अब की गर्मी के मौसम में,
वो सुकून अनुभूत कर रहे हैं।
जाने क्यों ? यह सब पहली दफा था!
कितनी शांत,शीतल स्वच्छ हवा,
पर आज यह कोलाहल,
कुछ अलग-सा था
कुछ बढ़ गया था।
आज जाने क्यों है इतनी बेचैनी,
किसकी याद उन्हें है सताती
पता चला परेशान हैं वो सब अब,
वापस से इंसान की आवाजाही से।
अब फिर मुश्किल होगा कोयल
का इस पीपल पर,
ऊँची तान देना।
मीठे गीत गाना,वो पानी से भरे पोखर में गौरैया का फुदकना,
घर पर लटके झूमर पर झूला झूलना
तितलियों का फूलों पर मंडराना,
अब होगा कर्कश आवाज में गाड़ियों का शोर
धुआँ निकालती मोटरगाड़ी,
सायरन बजाती रेलगाड़ी का शोर
अब बहुत दूर होगा मेरी कोयल,पपीहा, तितली,नन्हीं चिड़िया का बसेरा।
काश! यह सृष्टि हर पल ऐसे ही मुस्का..
मेरे पीपल पर कोयल रोज तान ऐसे ही छेड़ती,और गोरैया मेंरे अंगना आन फुदकती॥

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।