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संदेश है प्रकृति का

पवन प्रजापति ‘पथिक’
पाली(राजस्थान)
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सृष्टि के प्रारम्भ में प्रकृति ने जब सभी जीवों की रचना की तो दो पैरों वाले जीव ‘इंसान’ को सबसे अधिक ताकत ‘दिमागी ताकत’ दी। प्राकृतिक संसाधनों का अकूत खजाना उसे सौंपा,साथ ही सब जीवों के संरक्षण की जिम्मेदारी भी उस दो पैरों वाले जीव को दी, लेकिन समय के साथ इस दो पैरों वाले जीव को यह भ्रम हो गया कि इस संसार में जीने का हक सिर्फ उसे ही है। जिन जीवों के संरक्षण की जिम्मेदारी उसकी थी,वो उसी के विनाश पर उतारू हो गया। प्राकृतिक संसाधनों का जो खजाना प्रकृति ने उसे दिया था,तो वो उसी के विनाश पर उतारू हो गया। चंद्रमा व मंगल जैसे ग्रहों पर अपना ध्वज फहराने की उपलब्धि भी हासिल कर ली। वैज्ञानिक प्रगति के मद में चूर यह ‘दो पैरों वाला जीव’ स्वयं को ईश्वर समझने लगा,पर
आज वही ‘सर्वशक्तिमान’ आज एक ऐसे शत्रु से लड़ रहा है,जिसे देखने तक के लिए सूक्ष्म दर्शी यन्त्र की सहायता लेनी पड़ रही है। प्रकृति के इस तमाचे ने उसे घुटनों पर ला दिया है। वह समझ नहीं पा रहा है कि आखिर ये हो क्या रहा है ? उसके तमाम उपाय इसके सामने बौने साबित हो रहे हैं।
शायद,प्रकृति इसके माध्यम से उसे सन्देश देना चाह रही है। यदि अब भी ये जीव प्रकृति के सन्देश को ना समझा तो भविष्य में स्वयं के विनाश का उत्तरदायित्व भी इसी का होगा।

परिचय-पवन प्रजापति का स्थाई निवास राजस्थान के जिला पाली में है। साहित्यिक उपनाम ‘पथिक’ से लेखन क्षेत्र में पहचाने जाने वाले श्री प्रजापति का जन्म १ जून १९८२ को निमाज (जिला-पाली)में हुआ है। इनको भाषा ज्ञान-हिन्दी,अंग्रेजी एवं राजस्थानी का है। राजस्थान के ग्राम निमाज वासी पवन जी ने स्नातक की शिक्षा हासिल की है। इनका स्वयं का व्यवसाय है। लेखन विधा-कविता,लेख एवं कहानी है। ब्लॉग पर भी कलम चलाने वाले ‘पथिक’ की लेखनी का उद्देश्य-मानव कल्याण एवं राष्ट्रहित के मुद्दे उठाना है। आपकी दृष्टि में प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानन्द जी हैं। इनकी विशेषज्ञता- भावनात्मक कविता एवं लघुकथा लेखन है।