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अबोध मानव

अंशु प्रजापति
पौड़ी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
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प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष……..

प्रकृति के देखे रूप बहुत,उत्तर से लेकर दक्षिण तक,
हरियाली से लेकर रेत तलक,गिरिराज से लेकर सागर तक।
तरुवर से लेकर तृण तक,अम्बर से लेकर पृथ्वी तक,
अनुभूति केवल सौंदर्य की,सुंदर छवि मोहक सृष्टि की।

किंतु प्रातः आज कुछ ऐसी हुई,वो छवि मोहक खो सी गयी,
क्यों उग्र रूप है काली-सा,क्या हमनें कुछ अपराध किया ?
रे मानव! तेरी बुध्दि,विवेक,प्रतिपल मैली प्रतिपल अतिरेक,
क्यों तूने अंगवस्त्र छीन लिया,क्यों तुमने ये दुष्कर्म किया ?

सन्ताप तनिक भी किया नहीं,क्षमा कभी मांगी ही नहीं,
यह साहस नहीं दुःसाहस है,तू वीर नहीं तू कायर है।
जब तक मौन ये धरा रही,तू समझा तेरी है सत्ता बड़ी,
समझाया तुझको प्रतिपल ये,ले उतना ही जो लौटा दे।

तेरे लालच का अंत नहीं,तो तेरा भी अब अंत सही,
भूल नहीं अपराध हुआ है,हुआ वही जो तूने गढ़ा है।
पहले बुलाया प्रलय को,तब याद किया फिर प्रभु को,
तो बाद में ही आएगा वो,तब तक क्या-क्या न करवाएगा वो।

अब भी न तू बैठ छुपकर,माँग क्षमा प्रार्थना कर,
माँ है वो कब तक रूठेगी,फिर अंक भी भरेगी वही।
ये सबक है इसको याद रख,तू तुच्छ है मत वृहत समझ,
कर स्वीकार तू बालक है,ये न समझ कि पालक है।

प्रकृति है जीवन की धुरी,स्मरण रहे अति हर तरह बुरी,
ये पराजय नहीं स्वीकृति है,माँ के समक्ष पुत्र पुत्र ही है।
प्रकृति पूज्यनीय,पालक और पोशक है,और विश्व पर,
छाया विनाश तेरी अबोधता का द्योतक है॥

परिचय-अंशु प्रजापति का बसेरा वर्तमान में उत्तराखंड के कोटद्वार (जिला-पौड़ी गढ़वाल) में है। २५ मार्च १९८० को आगरा में जन्मी अंशु का स्थाई पता कोटद्वार ही है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली अंशु ने बीएससी सहित बीटीसी और एम.ए.(हिंदी)की शिक्षा पाई है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन (नौकरी) है। लेखन विधा-लेख तथा कविता है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-शिवानी व महादेवी वर्मा तो प्रेरणापुंज-शिवानी हैं। विशेषज्ञता-कविता रचने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“अपने देेश की संस्कृति व भाषा पर मुझे गर्व है।”

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