प्रियंका सौरभ
हिसार(हरियाणा)
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लैंगिक असमानता हमारे समाज में एक दीर्घकालिक समस्या है। आज भी महिलाओं के साथ कई तरह से भेदभाव किया जाता है। भारत के सामाजिक संदर्भ में कानूनी रूप से महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त है, मगर लैंगिक मुद्दों पर समाज को संवेदनशील बनाने की बहुत आवश्यकता है,ताकि कोई समस्या न हो। यह सुनिश्चित करने के लिए लिंग संवेदनशीलता एक लंबा रास्ता तय कर सकती है। लिंग संवेदीकरण व्यवहार का संशोधन है ताकि लैंगिक समानता बनाने के लिए अधिक जागरूकता और सहानुभूति हो। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे का सुझाव है कि, १५-४९ आयु वर्ग में भारत में ३० प्रतिशत महिलाओं ने १५ वर्ष की आयु से शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है। रिपोर्ट में आगे खुलासा हुआ है कि लगभग ३१ प्रतिशत विवाहित महिलाओं ने अपने पति द्वारा शारीरिक,यौन या भावनात्मक हिंसा का अनुभव किया है।
महिलाओं के साथ न केवल गर्भ और बचपन में, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में भेदभाव किया जाता है। एक बेहतर और सम्मानजनक जीवन जीने के लिए व्यक्तिगत विकास और स्वतंत्रता की उनकी क्षमता और लैंगिक समानता सुनिश्चित करना एक समावेशी और सुरक्षित समाज की दिशा में पहला कदम है। लिंग संवेदीकरण हमारे पुरुष होने के बारे में कई धारणाओं को दूर करने में मदद करेगा। लैंगिक अपराधों को समाप्त करने के लिए लैंगिक संवेदीकरण और व्यापक सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता है।
लैंगिक भेदभाव का मूल कारण भारतीय समाज में प्रचलित पितृसत्तात्मक मन है। हालांकि अब ये शहरीकरण और शिक्षा के साथ बदल रहा है,फिर भी लंबा रास्ता तय करना है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार हिंसा का अनुभव करने वाली ४० प्रतिशत से कम महिलाएं किसी भी प्रकार की मदद लेती हैं। जो मदद मांगती हैं,वे परिवार और दोस्तों के पास जाती हैं और बहुत कम औपचारिक संस्थानों और तंत्रों को देखती हैं,जैसे पुलिस और स्वास्थ्य सेवाएं। हिंसा का अनुभव करने के लिए मदद मांगने वाली उन महिलाओं में से १० प्रतिशत से भी कम ने पुलिस से अपील की।
आँकड़ों के मुताबिक,उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध हुए,जबकि मध्य प्रदेश में देश में सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले दर्ज हुए। लिंग असमानता महिलाओं के खिलाफ हिंसा के गहरे मूल कारणों में से एक है। किसी भी रूप में हिंसा न केवल महिलाओं के शारीरिक, मानसिक,यौन और प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित करती है,बल्कि आत्मसम्मान,काम करने की क्षमता और प्रजनन क्षमता के बारे में निर्णय लेने पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है। हिंसा सूक्ष्म और वृहद स्तर पर विकास और नियोजन कार्यक्रमों में महिलाओं की भागीदारी को बाधित करती है।
लिंग संवेदीकरण एक आंदोलन है,जिसके माध्यम से रूढ़िवादी और पारंपरिक सोच वाले लोग,निर्णय लेने में महिलाओं और पुरुषों की समान भागीदारी को सुनिश्चित करने में सक्षम होना चाहिए।
शिक्षा की मदद से शिक्षण संस्थानों में लैंगिक संवेदनशीलता बच्चों,अभिभावकों और समुदाय के अन्य सदस्यों के बीच भविष्य में उनकी भूमिका के बारे में जागरूकता पैदा कर सकती है।
हम जानते हैं कि हमारा समाज कठोर है,इसलिए लोगों के दिमाग में बदलाव लाना मुश्किल है। इसलिए,महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार को और अधिक कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत करनी चाहिए।
‘निर्भया’ की घटना के बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख ने बलात्कार और हिंसा के खिलाफ कहा था भारत में महिलाओं को एक ‘राष्ट्रीय समस्या’ है,जिसे ‘राष्ट्रीय समाधान’ की आवश्यकता होगी। बेहतर पुलिसिंग,फास्ट-ट्रैक कोर्ट,त्वरित सजा समय की जरूरत है। सार्वजनिक स्थानों को सभी के लिए सुरक्षित बनाया जाना चाहिए। लड़कों और लड़कियों को स्वतंत्रता के माहौल और आपसी सम्मान की संस्कृति में उठाया जाना चाहिए। आत्मसम्मान,निजता का अधिकार और लिंग संवेदनशीलता ऐसे मुद्दे हैं,जिन्हें भीतर एकीकृत किया जाना है।
समानता के सामाजिक मूल्यों पर युवाओं को शिक्षित करने के लिए विद्यालय और महाविद्यालय के पाठ्यक्रम में परिवर्तन और महिलाओं की स्वायत्तता के लिए सम्मान की आवश्यकता है।
ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि क्या किया जा सकता है,वर्तमान में क्या कमी है।
केन्द्रीय,राज्य,जिला और विकास खण्ड स्तर पर महिलाओं के खिलाफ अपराध पर एक व्यापक और व्यवस्थित अनुसंधान और विश्लेषण की आवश्यकता है। कुल मिलाकर महिला सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को पहले से ज्यादा सोचा-समझा जाना चाहिए।