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छालों भरे पाँव

सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’
कोटा(राजस्थान)
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चुभे थे
बरसों पहले
जो ‘बाबा नागार्जुन’ की
आँखों में,
वैसे ही चुभ गये
फिर से
आँखों में मेरी
पैदल चलते मजदूरों के
छालों भरे पाँव।
रहन हुए खेत सब
मर गए भूखे,
प्यास भी
बुझी नहीं
नदी-ताल सूखे,
चले कृषक
शहर में
पाने को ठाँव।
पता नहीं था
‘कोरोना’आ
ढाएगा कहर,
अचानक ही
जन-जीवन
जाएगा ठहर।
आदमी घरों में
बाहर है
कौओं की काँव।
चल पड़े मजदूर
घरों को अपने,
‘वामन’ के पैरों से
धरा लगी नपने,
कड़ी धूप
काँधे बोझ
पेट में नहीं निवाले,
तपती सड़कों पर
बन बनकर
फूट रहे
पाँवों के छाले,
छीन ली शहर ने
झुग्गी के
छप्पर की छाँव।
रोटी की आस में
टूट गई साँस,
शासन से उठ गया
मन का विश्वास,
उजड़ गया आँख में
सपनों का गाँव।
खुल गई
व्यवस्था की
सारी ही पोल,
बड़े बड़े
वादों का
फूट गया ढोल,
राजनीति
चलती रही
‘शकुनि’ के दाँव॥

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl

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