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भारतीय किसान की परिस्थिति आज भी खराब

अल्पा मेहता ‘एक एहसास’
राजकोट (गुजरात)
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‘बोए जो बीज खून-पसीना बहा के,
आँखों से क्यू फिर आँसूओं की धारा बहती है
मिट्टी को सोना बनाते-बनाते,
खुद क्यूँ मिट्टी में मिल जाते हैं।
चूल्हा जलाने माचिस की तीली तो मिलती है,
पर तवे पे सेंकने रोटी क्यूँ आखिर नहीं मिलती है॥’
आज लगभग ९५ फीसदी किसान आधिकारिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे उपज बेचने के लिए मजबूर हैं,और उनकी औसत वार्षिक आय २१ हजार रुपए से कम है। यही कारण है कि कई किसान खेती छोड़ रहे हैं,व अन्य व्यवसायों में जाने की कोशिश कर रहे हैं।यही कारण है कि कोई भी किसान बनना नहीं चाहता…आखिर क्यों..??
‘किसान’,ये शब्द जब हमारी जुबां पर आता है,तब हमारी नज़र के सामने तपती धूप में खेत में हल चला रहा इंसान दिखाई देने लगता है। वो किसान जो अपना जीवन मिट्टी के नाम कुर्बान करता है,जो जीवन में त्याग और तपस्या से मिट्टी को सोना बनाता है,थर-थर ठंड में कांपता उसका शरीर, बारिश में भीगती हुई काया और अग्नि ज्वाला-सी धूप में जलते हुए अपने शरीर को वो खेत में सोना उगाने के लिए तत्पर बनाता है। यह त्याग,समर्पण किसान को देश का हृदय बनाता है। जैसे शरीर में आत्मा न हो तो शरीर का कुछ मोल नहीं,ठीक वैसे ही किसान देश की आत्मा है। किसान के लिए खेती उनकी साधना,तपस्या है।
हमारे देश की सत्तर प्रतिशत आबादी छोटे-छोटे गाँव में जीवन गुजारती है,उनका व्यवसाय खेती है। किसान खेती को ही अपनी पूजा मानते हैं,उसके लिए खेती धर्म ओर कर्म दोनों है। उसमें बीज बोकर,हल चढ़ाकर,हरे-हरे खेत खलियानों में पानी पिलाकर अपनी भक्ति को सार्थक बनाते हैं। जैसे अपने बालक का लालन-पालन करते हैं,ठीक वैसे ही खेत का जतन करते हैं।
भारतीय किसान ग्रामीण वातावरण में ही रहकर विषमताओं से जूझते हुए अपने कर्म में नि:स्वार्थ भावना से अपने जीवन की कर्मभूमि से लगातार संघर्ष करता रहता है। इस अर्थ में भारतीय किसान का पूर्ण जीवन उसके अगाध त्याग,तपस्या,परिश्रम, ईमानदारी,लगन व कर्तव्यनिष्ठा की अद्‌भुत मिसाल है।
हमारे देश की प्राचीन संस्कृति के संरक्षक किसान हैं। किसान का वेश धोती- कुर्ता,सर पर पगड़ी उसकी गरिमा के साक्षी हैं। किसान महिला आज भी सर पर पल्लू लगाकर खेत में काम करती है। पति के लिए खाना ले जाकर खेत में ही खिलाती है। इतने परिश्रमी किसानों का भोजन बिलकुल सादगी भरा होता है। बाजरे की रोटी, लसन की चटनी उसका मूल है। यह जीवन की तमाम विसंगतियों,विपन्नताओं एवं अभावों से जूझते हुए सृष्टि के जीवों की क्षुधा को शान्त करता है। अपने मेहनतकश हाथों से अन्न के दानों को तैयार करने वाला भारतीय किसान अपने कर्म में निरन्तर गतिशील रहता है।
जहां तक भारतीय किसान की स्थिति है,वह अत्यन्त संवेदनशील है। आधे से ज्यादा प्रतिशत भारतीय किसान जमींदारों,पूंजीपतियों,साहूकारों के आर्थिक शोषण का शिकार हैं। लेनदारों ने उन्हें गरीबी के मुँह में धकेल दिया है। पूंजीवादियों के कर्ज के बोझ तले दबा हुआ उसका जीवन बद से बदतर हो जाता है। कभी कुदरती प्रहार,कभी अकाल,कभी महामारी तो कभी बाढ़ या सूखे की चपेट में उसका सारा भविष्य डूब जाता है। ऐसी स्थिति में उसे आत्महत्या ही एक मार्ग सूझता है, और वो मृत्यु को भेंट हो जाता है। कई बार तो उन्हें सपरिवार भी सामूहिक रूप में भीषण गरीबी से जूझते हुए आत्महत्या करनी पड़ जाती है।
वर्तमान स्थिति में किसान की अगाध महेनत के पश्चात जो फसल उगती है,वो आधे से ज्यादा जमींदारों,दलालों के हाथों में चली जाती है। बिचौलिए पूरी तरह से उसकी अशिक्षितता का लाभ लेकर शोषण करता है। उसकी तैयार की हुई फसल का बहुत कम दाम मिलता है। यहां तक कि उसके पीछे पानी का किया हुआ खर्च भी नहीं निकलता। इतने परिश्रम के बाद भी उनको मुनाफा तो नहीं मिलता,ऊपर से नुकसान होता है। सरकार द्वारा कृषि के लिए बनाई हुई योजना का लाभ उसकी अशिक्षितता के कारण उसको मूल रूप से नहीं मिलता। देश में कृषि के लिए योजना तो बहुत उपलब्ध होती है,पर सिर्फ दिखावे के लिए। योजना में निर्धारित कायदे-कानून इतने ठोस व आवश्यक होते हैं,कि किसान लाभ तक नहीं पहुँच पाता है। आखिर नियम-कानून किसान की सुविधा के लिए है कि,असुविधा के लिए ये विचार करने को प्रेरित करता है। वास्तव में भ्रष्टाचार के हथकंडे किसान का गला दबोच लेते हैं। उसको उसी के परिश्रम से उगाए अनाज-दाने से विमुख कर देते हैं।
किसानों की सबसे बड़ी समस्या अपनी फसल का उचित मूल्य न मिलना है। पानी,मौसम,श्रम आदि की अनुकूलता के बावजूद अगर फसल हो भी जाए तो उसके उत्पाद का क्या किया जाए। सही लागत न मिलना बड़ी समस्या है। अक्सर फसल अधिक है और खरीददार कम तो किसान के लिए अच्छी फसल भी आफत बन जाती है।
भारतदेश की राजनीति में पूरा भ्रष्टाचार भरा पड़ा है। अशिक्षित किसानों को वादा करके चुनाव में मत तो खरीद लेते हैं, पर जीतने पर सब भूल जाते हैं। किसानों को हर बार लगता है कि,इस बार कुछ अच्छा होगा और इस आस में वो बैठे रहते हैं। राजनीति में ऐसे शख्स की जरुरत है,जो किसान की व्यथा को महसूस कर पाए। देश के तमाम प्रधान कृषि से जुड़े हुए हों,जो खुद ये विषमता से गुजरा हो,तभी भारत सही मायने में कृषि प्रधान देश कहलाएगा। किसान की आर्थिक समस्या के लिए सरकार को लघु उद्योग की योजना बनानी चाहिए, जिससे किसान सिर्फ खेती पर गुजारा न करें,साथ में लघु उद्योग से भी आमदनी पा सके।
भारत में सरकार काफ़ी पैसा कृषि से संबंधित सरकारी केन्द्रों के संचालन में लगाती है,ऐसा वो दिखाती है,पर इन केन्द्रों के अफ़सर,किसानों की समस्या का कोई समाधान नहीं करते हैं। ऐसे अफ़सर उलटे उन किसानों से फर्जी तरीके से धन प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। हमें इतना सोचना चाहिए कि कोई किसान हमारे इक गलत निर्णय से आत्महत्या न कर ले। सरकार को जागरूक करने के साथ-साथ हमें खुद को भी जागरूक करना होगा।
केन्द्र सरकार ने किसानों की समस्याओं का हल खोजते हुए समर्थन मूल्य बढ़ाने की घोषणा की है। यदि समर्थन मूल्य बढ़ाने भर से किसानों की समस्याओं का हल संभव है तो फिर कृषि क्षेत्र की खराब हालत को लेकर इतनी हाय-तौबा क्यों हो रही है ? इस बढ़े हुए समर्थन मूल्य का कितने किसानों को लाभ प्राप्त होगा ? कृषि की पूरी व्यवस्था किसान को लूटने और उसे गुलाम बनाए रखने के लिए बनाई गई है। उनके लिए किसान एक गुलाम है,जिसे वह उतना ही देना चाहते हैं जिससे वह पेट भर सके और मजबूर होकर खेती करता रहे।
हमारे भारतीय किसान के न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर आकलन करें तो खेती में काम के दिन के लिए केवल औसत ८५ से ९५ के बीच रुपए मजदूरी मिलती है। यह मजदूरी सालभर के लिए प्रतिदिन ५५ से ६० रुपए के लगभग होती है। खुद की फसल की मेहनत से तो किसान को कुछ मिलता ही नहीं,खेती में काम के लिए न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिलती है।
सरकार से सवाल कि-संविधान किसलिए होता है,संविधान का लक्ष्य क्या होना चाहिए…देश की सुरक्षा के लिए,सर्व समस्या निवारण के लिए,या देश को समस्या में धकेलने के लिए ??

परिचय-अल्पा मेहता का जन्म स्थल राजकोट (गुजरात)है। वर्तमान में राजकोट में ही बसेरा है। इनकी शिक्षा बी.कॉम. है। लेखन में ‘एक एहसास’ उपनाम से पहचान रखने वाली श्रीमती मेहता की लेखन प्रवृत्ति काव्य,वार्ता व आलेख है। आपकी किताब अल्पा ‘एहसास’ प्रकाशित हो चुकी है,तो कई रचना दैनिक अख़बार एवं पत्रिकाओं सहित अंतरजाल पर भी हैं। वर्ल्ड बुक ऑफ़ टेलेंट रिकॉर्ड सहित मोस्ट संवेदनशील कवियित्री,गोल्ड स्टार बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड एवं इंडि जीनियस वर्ल्ड रिकॉर्ड आदि सम्मान आपकी उपलब्धि हैं। आपको गायन का शौक है।

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