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सामाजिक समरसता का पर्याय होली

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) विशेष…

होली सामाजिक समरसता का त्यौहार है। इसमें कोई किसी से भेदभाव नहीं करता। रंगों के इस त्यौहार में अमीर-गरीब एक जगह इकठ्ठे होकर रंग-गुलाल खेलते हैं, पर समय के साथ इसमें बहुत परिवर्तन हो गया है। पर्यावरण के बचाव के कारण लकड़ियों का जलाना कम होता जा रहा है। आजकल रासायनिक रंगों के कारण त्वचा रोग,नेत्र रोग होने के अवसर होने से अब सीमित या कम खेलते हैं।
वर्तमान में कोरोना संक्रमण के कारण इस त्यौहार की मस्ती विगत वर्ष और इस वर्ष भी बहुत सतर्कता से मनाना है। यह त्यौहार आपसी मेल-जोल का होने से संक्रमण काल में बहुत सावधानी की जरुरत है,क्योंकि मिलने-जुलने से संक्रमण फ़ैलाने या फैलने का डर रहेगा।
होली को रंगों के त्योहार के रूप में जाना जाता है। यह भारत में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। प्रत्येक वर्ष मार्च के महीने में हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा उत्साह के साथ होली मनाई जाती है। जो इस त्योहार को मनाते हैं,वे हर साल रंगों के साथ खेलने और मनोरम व्यंजनों का बेसब्री से इंतजार करते हैं। होली दोस्तों और परिवार के साथ खुशियाँ मनाने के बारे में है। लोग अपनी परेशानियों को भूल जाते हैं और भाईचारे का त्योहार मनाने के लिए इसका आनंद लेते हैं। दूसरे शब्दों में,हम अपनी दुश्मनी भूल जाते हैं और त्योहार की भावना में पड़ जाते हैं।
लोगों द्वारा बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाई जाने वाली होली समाज में चल रही कुरीतियों को समाप्त करने का पर्व है। होली प्रेम और भाई-चारे का प्रतीक है। इस दिन एक-दूसरे को रंग लगाकर हीनभावना को समाप्त किया जाता है। होली पर प्रेमी-प्रेमिका के अलावा पिता-पुत्र, भाई-बहन,देवर-भाभी,सभी लोग अपने रिश्तों को मजबूत करने के लिए रंग लगाते हैं। हिन्दू धर्म के इतिहास के अनुसार भक्त प्रहलाद ने भी भगवान विष्णु जी को रंग लगाकर अपनी भक्ति को पहले से ज्यादा मजबूत किया और सभी में प्रेम का सन्देश दिया।

होली पर हमें संकल्प करना चाहिए कि हम कोई गलत कार्य ना करें,प्रेम-भाव से एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहें। इसके अलावा अजनबी लोगों पर रंग न लगाएं,पता नहीं वह कौन-सी स्थिति में घर से बाहर अस्पताल या यात्रा पर जा रहा हो। ऐसे ही
रंगों का उपयोग ना कर मात्र प्राकृतिक गुलाल का उपयोग करें,क्योंकि त्यौहार आनंद के लिए है,ना कि किसी को कष्ट देने के लिए।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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