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तेरी आँखें

विजय कुमार
मणिकपुर(बिहार)

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तेरी आँखें ये कहती हैं,
तेरे काजल-सी लगती हैं
चमकती मोती जैसी हैं,
बात कुछ ऐसी लगती है।

जुबां से ऐसा लगता है,
प्यार का गहरा नाता है
छुपाने से नहीं छुपता,
प्यार तो ऐसा होता है।

फूल से खुशबू आती है,
तुम्हें बस याद आती है
दिन में तारे दिखते हैं,
तभी तो राज गहरे हैं।

जमाना पीछे चलता है
तू तो बस,आगे निकलती है,
प्यार में अक्सर होता है
प्यार साफ झलकता है।

तेरी आँखें ये कहती हैं,
तेरे काजल से लगती हैं।
चमकती मोती जैसी हैं
बात कुछ ऐसी लगती है॥

परिचय–विजय कुमार का बसेरा बिहार के ग्राम-मणिकपुर जिला-दरभंगा में है।जन्म तारीख २ फरवरी १९८९ एवं जन्म स्थान- मणिकपुर है। स्नातकोत्तर (इतिहास)तक शिक्षित हैं। इनका कार्यक्षेत्र अध्यापन (शिक्षक)है। सामाजिक गतिविधि में समाजसेवा से जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता एवं कहानी है। हिंदी,अंग्रेजी और मैथिली भाषा जानने वाले विजय कुमार की लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक समस्याओं को उजागर करना एवं जागरूकता लाना है। इनके पसंदीदा लेखक-रामधारीसिंह ‘दिनकर’ हैं। प्रेरणा पुंज-खुद की मजबूरी है। रूचि-पठन एवं पाठन में है।

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