एक बार फिर से जगा,मानव बन हैवान।
उसकी पशुता ने हरा,नारी जीवन,मान॥
हद से गुज़री क्रूरता,दक्षिण का यह कृत्य।
चंदा भी रोने लगा,रोता है आदित्य॥
वह भोली-सी डॉक्टर,मानव सेवा लक्ष्य।
हिंसक नर ने कर लिया,उस देवी को भक्ष्य॥
रौंद दिया बूटों तले,कलिका का संसार।
फाँसी में ही शेष अब,’शरद’ न्याय का सार॥
सामूहिक दुष्कृत्य यह,सुनकर झुकते शीश।
दोषी का संहार हो,विनय कौशलाधीश॥
क्रूर बना मानव बहुत,तनिक न आई लाज।
कैसे उसने यह किया,सोचे सकल समाज॥
दिन पर दिन अब बढ़ रहे,महिला प्रति दुष्कर्म।
नारी की रक्षा पले,हम सबका यह धर्म॥
चर्चा में आया नगर,आज हैदराबाद।
पर सिर सबके झुक गये,है सबको अवसाद॥
क्योंकर नर कामी हुआ,तजकर पावन रूप।
वह तो तम में खो गया,सिसके उजली धूप॥
मृत्युदंड ही कारगर,यही आज हुंकार।
ये दानव रखते नहीं,जीने का अधिकार॥
परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैl आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैl एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंl करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंl साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंl राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।