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आक्रोश

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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अस्मतें क्या यूँ ही लुटती जाएंगी ?
आवाज ये सरकार तक कब जाएगी ?
 
कैसी है किस्मत ये बेटी की प्रभु ?
दिनदहाड़े वो जला दी जाएगी ? 
 
कब तलक होंगी सुरक्षित बेटियां,
कब तलक इज्जत उछाली जाएगी ? 
 
कब तलक अपराध पकड़े जाएंगे ?
कब तलक यूँ वो सजा ना पाएंगे ?
 
कब मिलेगा न्याय हैं ख़ामोश क्यों ?
कब दरिंदे फाँसी पर चढ़ पाएंगे। 
 
कब खुलेगी आँखें इन नेताओं की, 
कब तलक इनको शरम आ जाएगी ? 
 
जब किसी नेता की बेटी रोड पर, 
भी यूँ ही जिंदा जला दी जाएगी ?
 
कैसी ये आजादी हमने पायी है ?
अस्मतों से कीमतें चुकाई है। 
 
न्याय पालक हैं सभी ख़ामोश क्यों ?
दिनदहाड़े बेटियां मरवायी हैं ?
 
फिर क्यों बेटी को बचाना चाहते ?
किसलिए बेटी ‌पढ़ाना चाहते ?
 
क्यों नहीं घर में सुरक्षित बेटियां ? 
देश रखवालों पे लाखों लानतें। 
 
कब तलक ये दंश सहते जाएंगे ?
कब तलक आँसू बहाते जाएंगे ?
 
पुत गयी कालिख है भारत देश पर, 
दुनिया को हम कैसे मुँह दिखायेंगे…?
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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