आरती रावत,
श्रीनगर गढ़वाल (उत्तराखंड)
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काव्य संग्रह हम और तुम से
याद में तेरी मैं सदियों से अभी सोयी नहीं,
कोई पल ना ऐसा गुजरा जब के मैं खोयी नहीं।
आ के पगली पवन ने जब खटखटाया दर मेरा,
यूँ समझ बैठा ये दिल पैग़ाम है शायद तेरा…
खोले पट दिल और दर के देखा तो कोई नहीं।
रास्ते वीरान हैं और मंजिलें ख़ामोश हैं,
चल रहे हैं कदम बेजां जोश है ना होश है…
कौन-सी ऐसी खुशी है मैंने जो खोयी नहीं।
वो नयन जिनसे तू उतरा था मेरे दिल में कभी,
सोचती हूॅ॑ आए इनमें भी कभी थोड़ी नमी…
तुझसे बिछड़ी हूँ मैं जबसे आँखें ये धोयी नहीं।
बेवफा जो हो गये वो लौट के आते नहीं,
याद के साये वो उनके दिल से क्यूं जाते नहीं…
रुह तड़पी,दिल भी तड़पा,फिर भी मैं रोयी नहीं।
कहते हैं अपना ही बोया काटते हैं सब यहाँ,
कर्मों का सब खेल है कहता है ये सारा जहाँ।
कैसे काटूॅ॑ उस फसल को मैंने जो बोयी नहीं…॥