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अम्मा मुझको भूख लगी है…

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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बन्द हुई सारी दुकानें,
बन्द हुए सारे बाजार
बचा नहीं आटा झोली में,
नहीं बची रोटी दो-चार।
आँतों में भी आग लगी है,
अम्मा मुझको भूख लगी है…॥

दूर-दूर तक छाया वीराना,
पानी का भी नहीं ठिकाना
चिपक गई जिव्हा तालू से,
अश्क रुक गए हैं गालों पे।
आँसुओं की झड़ी लगी है,
अम्मा मुझको भूख लगी है…॥

राह देखते थक गई आँखें,
नहीं कोई इस ओर है झाँके
आँखों में छाता है अन्धेरा,
हाथ थाम लो माँ अब मेरा।
नहीं कोई उम्मीद बची है,
अम्मा मुझको भूख लगी है…॥

कहीं बन रहे व्यंजन सारे,
खायें सब ले ले चटखारे
अपना घर क्यूँ सूना-सूना,
रोता है क्यूँ कोना-कोना।
आज भूख से जंग छिड़ी है,
अम्मा मुझको भूख लगी है…॥

पूछो उस भगवान से जाके,
किस्मत में क्यों दिए फांके
क्यूँ हमको दुनिया में लाया,
फिर क्यूँ है ऐसा पेट बनाया।
साँभी अब थकी-थकी हैं,
अम्मा मुझको भूख लगी है…॥
अम्मा मुझको भूख लगी है…

परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।

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